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६९. 'इंडियन डेली टेलिग्राफ' के सम्पादकके प्रश्नोंके उत्तर

[ २१ सितम्बर, १९२१][१]

"इंडियन डेली टेलिग्राफ" के सम्पादक श्री जे० एम० मैकेंजी द्वारा पूछे गये कुछ और प्रश्नोंके उत्तर श्री गांधीने दिये हैं।

[ प्रश्न : ] १ : भारत अपनी एक ही माँग स्वीकार करानके खयालसे साम्राज्यीय सम्मेलन में शामिल हुआ था, लेकिन दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यने उसे भी अस्वीकार कर दिया। क्या आप इसके लिए गणराज्यको प्रतारणाका पात्र समझते हैं ? क्या यह नहीं हो सकता कि जिस देशमें आपने अपने प्रारम्भिक दिनोंमें सफलता पाई थी, उस देशमें एक बार फिर जायें ताकि सारा भारत आश्वस्त होकर बैठ सके ?

[ उत्तरः ] भारतमें आज जो सवाल मौजूद है, वह दक्षिण आफ्रिकी सवालका ही वृहत्तर रूप है। अगर मैं यहाँ सफल हो जाता हूँ तो वहाँका सवाल तो अपने-आप हल हो जायेगा।

२ : स्वयं आप भी अबतक आत्म-शासनको अवस्था प्राप्त नहीं कर पाये हैं, इसलिए ऐसे घोर पतनकारी वातावरणमें इधर से उधर ठोकरें खानेवाले हम शेष लोगों की दयनीय स्थितिका तो आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं ?

स्वयं मुझमें भी बहुत-सी कमियाँ हैं, इसलिए मैं आदमीकी कमियोंको बेशक महसूस करता हूँ, और अहिंसामें मेरे विश्वासका कारण भी यही है।

३ : यदि आप अपने प्यारे देशके लोगोंको गरीबी और फकीरीकी तकलीफदेह जिन्दगीके अलावा और सब कुछ छोड़ देने को मजबूर कर दें तो क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि उनका भी वही हाल होगा जो रूसकी जनताका हुआ ?

रूसकी जनताका हाल क्या हुआ, मैं नहीं जानता। लेकिन भारतको मैं अच्छी तरह जानता हूँ। आजतक हम लोग मजबूरन गरीबीमें जीते रहे, लेकिन अब गरीबी और फकीरीकी जिन्दगीको हम धीरे-धीरे अपनी खुशीसे अपनाते जा रहे हैं।... अपने सिद्धान्तपर मैं स्वयं आचरण कर रहा हूँ, इसलिए मेरा अनुमान गलत नहीं हो सकता।

४ : निराशाके गर्त में तो वह भी गिरा जो 'दुराग्रही' था और वह भी जो समझाने-बुझानेसे बात मान लेनेवाला था। इसलिए क्या आप सोचते हैं कि "रुकनेको तैयार रहनेवाले" के तरीकोंके समर्थन में अथवा "दोनों ओर रुख किये रहनेवाले" के भी तरीकोंके पक्ष में कुछ कहा जा सकता है ? या कि आप सारा बोझ लेकर ही "दिव्य नगरके द्वार" तक पहुँचनेको कृतसंकल्प हैं ?

  1. यह प्रश्नोत्तर एसोसिएटेड प्रेस द्वारा इसी दिन लखनऊसे जारी किया गया था।