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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाना चाहिए। यह स्वराज्य पानेके उपायोंमें से एक है। इसी तरह आप विदेशी कपड़ेके बहिष्कार और स्वदेशी कपड़े के उत्पादनके लिए भी ऐसे ढंगसे संगठित प्रयास कर सकते हैं, जैसे सन्तोषजनक ढंगसे कोई सत्ता यह काम कर सकती है, क्योंकि डिंडीगलके नागरिक आपके नियन्त्रण में हैं। यही बात मद्यनिषेध अभियानपर भी लागू होती है। मैं आशा तो यही करता हूँ कि लोगोंके सामने अपने आचरणका उदाहरण रखकर, अपनी परिषद् में प्रस्ताव पास करके तथा पूरे यन्त्रको नये सिरेसे क्रियाशील बनाकर आप. . . ये तीनों लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। मानपत्र के लिए एक बार फिर मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-१९२१


७१. भाषण : डिंडीगलको सार्वजनिक सभामें[१]

२१ सितम्बर, १९२१

डिंडीगलके नागरिकोंने स्मर्ना तथा तिलक स्वराज्य-कोष के लिए महात्माजीको एक थैली भेंट की। उसके बाद गांधीजीने निम्नलिखित भाषण दिया। डा० टी० एस० एस० राजन्ने उसका तमिल अनुवाद सुनाया :

जब त्रिचनापल्लीमें आपके प्रतिनिधियोंको मौलाना साहब और मुझसे इस नगर में आनेका आग्रह करते देखा तो सोचा कि यहाँ अवश्य ही असह्योगके कुछ असाधारण परिणाम देखनेको मिलेंगे। मैंने आशा की थी कि आप सब हाथका कता-बुना खद्दर पहने होंगे। मुझे उम्मीद थी कि डिंडींगलके प्रत्येक घरमें एक चरखा जरूर होगा परन्तु यहाँ तो मैं केवल शोर-शराबा और कोरा उत्साह ही देख रहा हूँ।. . .यदि हम स्वराज्य या अलीभाइयों और उनके साथियोंकी रिहाई चाहते हैं, तो हमें अपने उत्साहको सही अभिव्यक्ति देनी चाहिए। डिंडीगलमें केवल तीन सौ चरखे हैं। आपके नगरकी जन-संख्या तीस हजार है, जिनमें से दस हजार मुसलमान और बीस हजार हिन्दू हैं। एक परिवार में औसतन पाँच व्यक्ति गिनें तो यहाँ ६,००० परिवार होने चाहिए और उनमें कमसे-कम छः हजार चरखे रोजाना चलने चाहिए। स्वदेशी के बिना स्वराज्य सम्भव नहीं। स्वदेशीका अर्थ केवल अपने देशकी जरूरतका सामान तैयार कर लेना नहीं, बल्कि खिलाफत और पंजाबके प्रति किये गये अन्यायोंका अहिंसात्मक ढंगसे निराकरण कराना भी है। मुझे मालूम हुआ है कि आप लोग छोटे-छोटे गुटोंमें बँटे हुए हैं। यदि हर व्यक्ति अपने-अपने कामसे ही सरोकार रखेगा तो निश्चय ही स्वराज्य नहीं मिल सकता। इसी तरह यदि हिन्दू अपनी उच्चताकी झूठी धारणापर आग्रह करते रहेंगे या पंचम लोगोंको अपनेसे पृथक समझते रहेंगे तो स्वराज्य मिलना असम्भव है।

  1. सभा चट्टानके निकटवाले मैदानमें हुई थी।