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भाषण : मदुरामें

इस अहाते में अपनी यात्राके दौरान जो चीज देखकर मेरा मन सबसे अधिक व्यथित हुआ वह है अस्पृश्यता। मैं अपने धर्मके प्रति अपने दायित्वको समझनेवाला एक सनातनी हिन्दू होने का दावा करता हूँ। और उसी नाते मैं यह कहनेकी हिम्मत करता हूँ कि हिन्दू शास्त्रोंमें कहीं भी ऐसी कोई बात नहीं है जिससे अस्पृश्यताको उचित माना जा सके। इसलिए जबतक हम (हिन्दू) लोग मनुष्यके साथ कुत्तोंसे भी बुरा व्यवहार करने से बाज नहीं आते तबतक हमें स्वराज्य पानेका कोई हक नहीं है। मैंने आपको स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए तथा पंजाब और खिलाफत सम्बन्धी अन्यायोंको दूर करानेके लिए सभी जरूरी शर्तें बता दी हैं। यदि मुसलमानोंको खिलाफत प्राणोंकी भाँति प्यारा है, यदि मुसलमान और उनके हिन्दू भाई अलीबन्धुओंके प्रति प्रेम रखते हैं और यदि हिन्दू और मुसलमान स्वराज्य चाहते हैं तो सबको नियमित रूपसे सूत कातना और कपड़ा बुनना शुरू करना चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंको एक-दूसरेके साथ सगे भाइयोंजैसा व्यवहार करना चाहिए। दोनों अपने-अपने धर्मपर दृढ़तासे डटे रहें, किन्तु साथ ही एक-दूसरेके लिए त्याग-बलिदान करने को भी तैयार रहें। हम सबको उत्तेजनाके गम्भीरसे-गम्भीर कारणोंके बावजूद अहिंसा धर्मपर दृढ़ रहना चाहिए। हिन्दुओंको अस्पृश्यता समाप्त करके अपने पंचम भाइयोंको गले लगा लेना चाहिए। मैं यह नहीं चाहता कि आप उनके साथ रोटी-बेटीका सम्बन्ध करें। परन्तु आपके हिन्दू-धर्मका तकाजा है कि आप मानव मात्रको समान अधिकार प्रदान करें। मैं चाहता हूँ कि आप पंचमोंको भी वही अधिकार दें जिसे कोई अन्य मनुष्य आपसे माँगनेका हक रखता है और जो आप शेष समाजसे खुद अपने लिए माँगते हैं। इस बात में मुझे रंचमात्र भी सन्देह नहीं है कि यदि ये शर्तें पूरी कर दी जायें तो हमें इसी साल स्वराज्य मिल जायेगा। ईश्वर हमारे प्रयासों के फलीभूत होनेमें हमारी सहायता करे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-१९२१


७२. भाषण : मदुरामें[१]

२१ सितम्बर, १९२१

मित्रो,

आपने इस समय जो अभिनन्दन पत्र भेंट किये हैं, उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। लेकिन दस हजार अभिनन्दन पत्र भेंट करके भी हम स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते। इतना शोरगुल सुनकर मुझे बहुत कष्ट होता है। मैं आपके समक्ष ऐसा व्याख्यान नहीं देना चाहता, जिसे सुनते-सुनते आप लोग ऊब जायें। अपने अभिनन्दन-पत्रों में आपने कहा है कि यह एक धर्म-युद्ध है। इस प्रकारके प्रदर्शन और इस तरहका शोर-गुल स्वराज्यके मार्गमें बाधक है। मदुरामें यह सब गड़बड़ देखकर मैं बहुत दुःखी हूँ।

  1. अब इसे मदुरई कहा जाता है।