पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/१९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या मैं यही सब देखने यहाँ आया था ? मुझे आशा है कि आपके नेता आपको बतायेंगे कि स्वराज्य हासिल करने के लिए आपका कर्त्तव्य क्या है। यदि आप भारतमें धर्म-राज्य चाहते हैं तो आपको चरखा जरूर चलाना चाहिए, क्योंकि यह शान्ति और हिन्दू-मुस्लिम एकताका प्रतीक है। आपको अस्पृश्यता समाप्त कर देनी चाहिए, क्योंकि धर्म उसकी अनुमति नहीं देता। आपको कोशिश करनी चाहिए कि नशाखोरी बिलकुल बन्द हो जाये। मुझे आशा है कि आपके नेता लोग आपको इन सब बातोंके बारेमें आपके कर्त्तव्यका भान करायेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-१९२१

७३. टिप्पणियाँ

बंगाल

बंगाल एक बड़ा प्रान्त है, इसलिए पाठकों को यह देखकर आश्चयं नहीं होना चाहिए कि इन टिप्पणियों में मुख्य रूपसे बंगालके ही कार्योंपर विचार किया गया है। व्यक्तिगत बातचीत में तो मैंने बेहिचक ऐसा कहा है कि स्वदेशीकी दृष्टिसे बंगाल सभी प्रान्तोंसे पिछड़ा हुआ है। वहाँके गाँवों या नगरोंके जन-साधारणपर तो स्वदेशीकी छापका कोई आभास नहीं मिलेगा। खादी बंगालमें सबसे कम देखनेको मिलती है। लेकिन वहाँ स्वदेशी के पुनरुज्जीवन के लक्षण अवश्य दिखाई दे रहे हैं। अन्य स्थानोंकी तरह यहाँके जीवनमें चरखेकी जड़ गहरी नहीं जम पाई है। लेकिन सर्वत्र इसका एक आम चलन तो होता ही जा रहा है। मैंने सिलचर और सिलहटमें इसे छोटे रूपमें देखा, लगभग खिलौने जैसा ही था। सूत कताईके लिए वैसे यह ठीक है, लेकिन इससे सूत बहुत कम तैयार होता है। चटगाँवमें अधिक चरखे देखनेको मिले और जरा बेहतर किस्मके भी। वहाँ वालोंने एक हल्का-सा सफरी चरखा भी तैयार कर लिया है, जिसे लड़के-लड़कियाँ ज्यादा पसन्द करते हैं। यह बहुत साफ-सीधा, सुन्दर और सस्ता है। लेकिन सिलचर-किस्मके चरखोंकी तरह ही इसपर भी उतना सूत नहीं कत पाता जितना कि पुराने किस्मके चरखोंपर कतता है। दूसरी ओर बारीसालमें हमने देखा कि वहाँ एक बहुत कौशलपूर्ण ढंगका चरखा ईजाद किया गया है, जिसके चक्केको पैंडलसे चलाया जाता है। वे हमें यह नहीं बता सके कि इसपर एक खास समय में कितनी कताई हो सकती है; लेकिन अगर पुराने किस्मके चरखे जितनी ही होती हो, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा। इन आविष्कारोंसे पता चलता है कि चरखेकी लोकप्रियता बढ़ रही है। और अब चरखा चलाना लोग जारी रखेंगे। इसके अतिरिक्त, बारीसालमें बहुत ही बारीक और एक-सा सूत देखकर बड़ी खुशी हुई। यह सूत वहाँके राष्ट्रीय स्कूलके लड़कोंने काता था। जितनी मात्रामें सूत दिखाया गया, वह भी बुरा नहीं था। बारीसालकी कताईशाला सुन्दर और साफ थी और उसमें जगह भी काफी थी। करघे