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श्रीरामपुर किस्मके उड़न-फिरकीवाले थे। संगठनकर्त्ताओंके अधीन कोई ८० करघे हैं। बगल के कमरे में करीब १५,००० रुपये के मालका स्टॉक था। वे अभीतक यह नहीं समझ पाये हैं कि ताना-बाना दोनोंमें हाथसे कते सूतका ही प्रयोग करना नितान्त आवश्यक है। मैं सभी कांग्रेस संगठनोंसे यह समझ लेनेका अनुरोध करता हूँ कि ताना-बाना दोनोंके लिए हाथ-कते सूतका ही प्रयोग करना सबसे जरूरी बात है। मिलमें तैयार सूत और हाथकते सूत, दोनोंकी मिलावटसे बना कपड़ा तो बाजारोंमें पहलेसे ही मिलने लगा है। और कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओंको ऐसी चीजोंपर अपना समय बरबाद करनेकी न जरूरत है और न उन्हें ऐसी चीजोंपर समय बरबाद ही करना चाहिए, जिनकी व्यवस्था एक साधारण व्यापारी भी कर सकता है।

लेकिन कहने की जरूरत नहीं कि मैंने जो ये थोड़ेसे करघे और चरखे देखे, उनसे पूरे बंगालकी कपड़े की जरूरत पूरी नहीं हो सकती। और अगर बंगालको अपनी कपड़ेकी जरूरत पूरी करने के लिए बम्बई और अहमदाबादपर ही निर्भर रहना पड़ा तो वह स्वराज्य आन्दोलनमें मदद नहीं कर सकता। जैसे उस आदमीको, जिसे जबरदस्ती भूखा रखा जाये, ईश्वर के बारेमें सोचनेको प्रेरित नहीं किया जा सकता, वैसे ही अधभूखे रहने को मजबूर लाखों-करोड़ों बंगाली स्वराज्यके बारेमें सोच नहीं सकते, उसकी खूबियोंको समझ नहीं सकते। स्वराज्यकी पहली अनिवार्य शर्त यह है कि हर प्रान्त खाद्य और वस्त्रके मामलोंमें आत्म-निर्भर हो जाये।

लेकिन एक बार पूरी तरह जग जानेपर बंगाल किसीसे पीछे नहीं रहेगा। उसकी कल्पनाशक्ति बहुत अच्छी है। उसके गाँव अब भी अपनी सादगी कायम रखे हुए हैं। बंगालकी धरती के बेटे बड़े होशियार और उद्यमी हैं, बेटियाँ बहुत शीलवती, भोली और प्यारी हैं। स्त्री-पुरुष दोनोंमें गहरी धार्मिक प्रवृत्ति है। उनकी आस्थामें मनुष्यको ऊपर उठानेका बल है। चरखेकी स्मृति उनके मनमें जीवित है। बंगालको सिर्फ इस बातको महसूस करना है कि वह न केवल अपने लिए, न केवल भारतके लिए बल्कि बाहरी दुनिया के लिए भी सुन्दर और महीनसे-महीन कपड़े तैयार करता था, और यद्यपि इस क्षेत्र में उसन अतीतमें बड़ा शानदार काम किया है, किन्तु अब वह उससे भी अच्छा काम करके दिखायेगा। बंगाल अब यह महसूस करने लगा है कि यद्यपि वहाँकी लाखों स्त्रियोंने कताईकी कलाको भुला दिया है लेकिन दूसरा कोई धन्धा नहीं अपनाया है, और उसकी तथा सारे भारतकी गरीबीका मूल कारण किसान वर्गकी वह बेकारी है, जिसे उसे मजबूर होकर स्वीकार करना पड़ता है। मुझे पूरा विश्वास है कि बंगाल अब चरखे के सन्देशको समग्रतः हृदयंगम करनेवाला है, और फिर तो वह भारतमें धूम मचा देगा।

जैसा कि एक मित्रने कहा, बंगालको अभी बहुत-सी बातें भुलानी भी हैं। अन्य कई प्रान्तोंकी तरह बंगालके सामने भी स्थिति ऐसी नहीं है कि वह तत्काल नये सिरेसे काम करना शुरू कर दे, उसे भी बहुत-सी मौजूदा बातोंको मिटाना है। उदाहरण के लिए, उसे यह समझना होगा कि ढाकामें विदेशी सूतसे जो कपड़ा बुना जाता है, वह स्वदेशी नहीं है।