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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हड़तालोंके बारेमें

असम-बंगाल रेलवे तथा जहाजोंके कर्मचारियोंकी हड़तालें सामान्य हड़तालोंसे भिन्न थीं। जैसा कि मुझे लगा है, मजदूर संघसे बाहरके लोगोंके प्रति सहानुभूति में हड़तालें करनका यह पहला प्रयत्न था। इस तरह ये हड़तालें दूसरोंके प्रति सहानुभूतिसे प्रेरित होकर की गई मानवतावादी और राजनीतिक हड़तालें थीं। मुझे पूरी रेलवे लाइनपर हड़तालियोंसे मिलनेका मौका मिला, लेकिन गौहाटी, चटगांव और बारीसालमें खास तौरसे। उनसे मेरी खुलकर बातचीत हुई और उस बातचीत के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि उन लोगोंकों, इस हड़तालकी क्या कीमत चुकानी होगी, इसका पूरा अहसास नहीं था। किसी बाहरी आदमीके लिए ऐसा कह देना कि अगर इस मामलेका संचालन मेरे हाथों में होता तो मैं ऐसा करता, वैसा करता, एक खतरनाक और अनुदारतापूर्ण बात है। लेकिन अगर मैं अपनी राय दूं तो यही कहूँगा कि मेरी समझसे मजदूर परमार्थवश की जाने वाली इस हड़तालके लिए तैयार नहीं थे। मेरे विचारसे भारतके मजदूरों और शिल्पियोंमें वैसी राष्ट्रीय जागृति नहीं आई है, जो दूसरोंके प्रति सहानुभूतिमें की गई हड़तालकी सफलताके लिए जरूरी है। दोष हमारा ही है। हम राष्ट्र सेवाके कार्य में लगे लोगोंने अभी कुछ समय पहलेतक इन वर्गोंकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओंका अध्ययन करनेकी चिन्ता नहीं की और न उन्हें राजनीतिक परिस्थितियोंकी सही जानकारी देनेकी ही फिक्र की। अबतक हम यही मानते रहे है कि जो लोग हाई स्कूलों और कालेजोंकी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, वे ही राष्ट्रका काम करने के लायक हैं। इसलिए यह अपेक्षा करना ठीक नहीं है कि मजदूर और शिल्पी लोग एकाएक दूसरोंके हितोंका खयाल करके उनके लिए त्याग और बलिदान करने लगें। हमें राजनीतिक अथवा अन्य उद्देश्योंके लिए उनसे नाजायज फायदा नहीं उठाना चाहिए। अभी हम उनकी जो सबसे अच्छी सेवा कर सकते हैं, उनसे जो सबसे अच्छी सेवा ले सकते हैं वह यह कि उन्हें अपनी सहायता आप करनेकी शिक्षा दें, उन्हें अपने कर्त्तव्यों और अधिकारोंका बोध करायें, और उन्हें इस लायक बनायें कि वे अपनी उचित शिकायतें स्वयं ही दूर करा सकें। राजनीतिक, राष्ट्रीय या मानवतावादी कार्यों और सेवाओंके लिए वे तभी तैयार होंगे -- उससे पहले नहीं। इसलिए अगर सही स्थिति आने से पूर्व सहानुभूति प्रेरित हड़तालें कराई जाती हैं तो उनसे हमारे उद्देश्यका अहित ही होगा। अपने अहिंसात्मक कार्यक्रममें इस विचारको हमें कोई स्थान नहीं देना है कि हम सरकारको परेशानीमें डालकर कुछ लाभ उठायें। अगर हमारा व्यवहार शुद्ध है और सरकारका अशुद्ध तो सरकार यदि स्वयं शुद्ध नहीं बनती तो हमारी शुद्धता ही उसकी परेशानीका कारण होगी। इस तरह शुद्धीकरण के आन्दोलनसे दोनों पक्षोंको लाभ है। लेकिन जो आन्दोलन सिर्फ ध्वंसात्मक है, उसमें ध्वंसकारीका शुद्धीकरण नहीं हो पाता और वह गिरकर उन्हीं लोगोंके धरातलपर आ जाता है जिन्हें वह ध्वंस करनेका प्रयत्न करता है।

इसलिए हमारी सहानुभूति प्रेरित हड़तालोंको भी आत्मशुद्धिकी हड़तालें होना चाहिए, अर्थात् उन्हें भी असहयोगके ढंगका होना चाहिए। और इसलिए जब हम