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और असहयोगियोंको गलत रूपमें पेश किया गया है। देखता हूँ, मेरे विचारोंको भी गलत रूपमें पेश किया गया है। मेरे भाषणोंसे वाक्योंको उनके सन्दर्भसे अलग करके ले लिया जाता है और तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण कवि-गुरु के साथ मेरी बातचीत है। अखबारोंमें उस बातचीतकी सर्वथा काल्पनिक और अनधिकृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। बातचीत में कुछ भी गोपनीय नहीं था, लेकिन उसे गोपनीय मान लिया गया है। यह हमें एक-दूसरेसे अलग कर देने के प्रयत्न-जैसा लगता है। लेकिन कवि-गुरु इतने महान् हैं कि इन बातोंका उनपर कोई असर नहीं हो सकता। असहयोगियोंको उन बातोंका विश्वास कदापि नहीं करना चाहिए, जो कवि-गुरुपर झूठ-मूठ आरोपित की गई हैं। हमारे बीच मतभेद हैं। लेकिन उनके कारण कवि-गुरुके प्रति मेरे सम्मान भाव में कोई फर्क नहीं पड़ता। कवि-गुरुको भी भारतसे उतना ही प्रेम है जितने प्रेमका दावा मैं करता हूँ, और वह प्रेम ही हमारे पारस्परिक सम्बन्धके लिए हर दृष्टिसे पर्याप्त है। इसलिए उस बातचीतको लेकर जो बवाल मचाया जा रहा है, उससे मैं संकल्पपूर्वक अलग रहूँगा। लेकिन अब फिर उन सवालोंकी बात लें। मुझे लग रहा था कि ये सवाल शरारतसे पूछे गये हैं, फिर भी जैसा कि मैं बता चुका हूँ, सार्वजनिक सभामें मैंने उनके जवाब दिये। यहाँ मैं अपन जवाब विस्तारपूर्वक नहीं देना चाहता। लेकिन पाठक इन सवालोंको देखकर खुद ही इस बेशकीमती प्रचारका रंग-ढंग समझ जायेंगे।

[ प्रश्न : ] १. आपने राजनीतिक हड़तालोंकी निन्दा की है। यहाँ आपके अनुगामियोंने जहाजी मजदूरोंकी हड़तालका समर्थन किया है और हड़तालियोंको खिलाने-पिलानेपर कांग्रेस कोषके हजारों रुपये खर्च किये हैं। क्या यह ठीक किया है ?

[ उत्तर : ] हड़तालोंके सम्बन्धमें मेरे विचार देखिए।

२. आपके आदेशसे सैकड़ों लड़कोंने स्कूल-कालेज छोड़ दिये हैं, और अब वे शान्तिप्रिय और विधि-पालक जनताका अपमान करने, उसे डराने-धमकाने में अपना समय बिताते हैं। इन लड़कों का भविष्य क्या होगा ? वे अपनी जीविका कैसे कमायेंगे ?

अगर लड़के वैसे लोगोंको अपमानित करते फिरते हैं, डराते-धमकाते रहते हैं तो यह गलत है। लेकिन मैं नहीं मानता कि उनमें से ज्यादा लोग ऐसा कह रहे हैं। लड़कोंका भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि अब वे स्वतन्त्र हैं। वे अपनी जीविका अपना पसीना बहाकर कमायेंगे। वे अब भी किताबी शिक्षा पा सकते हैं और पा रहे हैं।

३. आपने हड़तालों की भर्त्सना की है। यहाँ आपके अनुगामियोंने कई हड़तालें की हैं और वे दुकानदारोंको भड़का रहे हैं कि सरकारी अधिकारियों तथा सरकारके प्रति वफादार लोगोंके हाथ वे कोई सौदा न बेचें। क्या आप इसे बुरा मानते हैं ?

मैंने हर तरह की हड़तालको कभी भी बुरा करार नहीं दिया है। जब हड़ताल हो, तो हड़तालियोंकी सेवाका लाभ किसीको नहीं मिलना चाहिए। लेकिन कुछ खास वर्गों या लोगोंको ही इस सेवाका लाभ न देना गलत होगा। यह सही है कि हड़ताल बहुत कम और खास मौकोंपर ही करनी चाहिए।