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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

४. हालकी हड़तालके दौरान असहयोगियोंने नगरपालिकाके मेहतरोंको दो दिनों तक काम नहीं करने दिया, जलकी आपूर्ति बन्द करवा दी और लोगोंके स्वास्थ्यके लिए बहुत खतरा पैदा कर दिया। क्या यह ठीक काम था ?

मुझे लगता है कि इस सवालमें जो जानकारी दी गई है, वह कमसे-कम अंशत: सच है। हम अपने विरोधियोंको जीवनके लिए आवश्यक सामाजिक सेवाओंके लाभसे वंचित करना नहीं चाहते। जैसे सूरज बिना कोई भेद-भाव किये सबको प्रकाश बाँटता है, वैसे ही ऐसी सेवाओंका लाभ सबको मिलना चाहिए।

५. बाबू शरतकुमार घोषको जब इस कारण गिरफ्तार किया गया कि वे सरकारके प्रति वफादार लोगोंका अपमान करनेके लिए भीड़को उकसा रहे थे तो उन्होंने कहा कि शहरको पानी मत पहुँचाओ, उसके लिए रोशनीका इन्तजाम मत करो और उसे मेहतरोंकी सेवाका लाभ भी मत दो, उसे श्मशान बनाकर रख दो। उनका ऐसा कहना ठीक था या गलत ?

समिति के सौजन्यसे मैंने बाबू शरत्कुमार घोषका वह भाषण अब पढ़ लिया है। उसमें ऐसे अंश भी हैं, जिनका वह अर्थ लगाया जा सकता है जो इस सवालमें लगाने की कोशिश की गई है। लेकिन मुझे शरत् बाबूके उच्च चरित्र और आध्यात्मिक प्रवृत्तिका जो सुन्दर और शानदार विवरण मिला है, उसको देखते हुए मैं यह माननेको तैयार नहीं हूँ कि शरत् बाबू में हिंसाका भाव है। मुझे पूरा विश्वास है कि अगर उनसे कोई चूक हुई हैं तो वे सबसे आगे बढ़कर अपनी गलती स्वीकार करेंगे।

६. यह सब आपके नामपर किया गया और उन लोगोंके द्वारा किया गया जो "गांधी महाराजकी जय" का नारा लगाते थे। क्या आप यह सब पसन्द करते हैं ? अगर नहीं, तो आप अपने अनुगामियोंको भविष्य में ऐसा करनेसे किस तरह रोकने की सोचते हैं ?

मुझे आशा है कि "मेरे अनुगामी" अहिंसाकी भावनाको हृदयंगम कर रहे हैं। लेकिन अगर कभी ऐसा हो कि वे अहिंसाकी आड़में हिंसा पर उतर आयें तो मैं आशा करता हूँ कि उनकी हिंसाका पहला शिकार मैं ही होऊँगा। लेकिन अगर दैव-दुर्योगसे या अपनी ही कायरताके कारण मैं जीवित रह जाऊँ तो मेरे लिए सिर्फ हिमालयके हिमाच्छादित प्रान्तरोंमें ही स्थान होगा।

७, ८ व ९. क्या देशमें इतना स्वदेशी कपड़ा है जिससे सारे देशवासियोंका तन ढका जा सके ? क्या विदेशी कपड़ेके बहिष्कारसे कीमत नहीं बढ़ेगी ? क्या कीमत पहलेसे ही बहुत ऊँची नहीं है ? क्या बहिष्कार के कारण गरीब लोग बहुत मुसीबतमें नहीं पड़ जायेंगे, और फिर क्या वे, जैसा कि पहले हुआ है, लूटपाटपर नहीं उतर आयेंगे ? क्या खुलनाके बाशिन्दोंको पहले से ही कपड़ेकी कमी नहीं है ? क्या इस बहिष्कारसे उन्हें कोई मदद मिलेगी ? जो कपड़ा उन गरीबोंको अपना दुःख दूर करनेके लिए दिया जा सकता था, उस कपड़ेकी होली जलाना क्या ठीक है ?

क्या युद्ध-कालमें विदेशी कपड़ेकी कमी हो जानेके कारण कपड़ेकी कीमत चढ़ जानेसे बम्बईके मिल-मालिकोंने भारी मुनाफा नहीं कमाया ? अब अगर विदेशी कपड़ेका