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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रंजन करनेकी व्यवस्था की जायेगी, इस तरह स्वागत समितिने अपने सामने जो आदर्श रखा है वह है काम-काजको मनोरंजनसे अलग करके भी दोनोंपर अधिक जोर देना।

सिन्धमें दमन

नीचे सिन्धसे प्राप्त एक तार दिया जा रहा है, जो अपने-आपमें बिलकुल स्पष्ट है।

सिन्धमें दमन बढ़ता जा रहा है। जनता दृढ़। २४ अगस्तको दादूके महाराज द्वारकाको एक सालकी सजा दी गई। ९ तारीखको कराचीके मौलवी फतह अलीको एक सालकी सजा दी गई। ३ सितम्बरको शेख अब्दुल मजीदको २ सालकी और 'हिन्दू' के सम्पादक महाराज विष्णु शर्माको तीन सालकी सजा दी गई। इनके अलावा कराची और सक्खरमें बहुतसे धरने-दारोंको जेल भेज दिया गया है।

इसके अतिरिक्त मुझको अखबारोंकी कुछ कतरनें भी मिली हैं, जिनमें उस प्रान्तमें चल रहे भयंकर दमनचक्रका वर्णन किया गया है। मैं तो यही आशा कर सकता हूँ कि दमन बढ़ने के साथ-साथ इसी वर्ष स्वराज्य पानेका लोगोंका संकल्प भी बढ़ता जायेगा। अपने कार्यक्रमको पूरा करनेके लिए हमें समझदारी और कठिन श्रमकी जितनी जरूरत है, उतनी बलिदानकी नहीं।

अलंघ्य दीवार

अगर अस्पृश्यता कायम रही तो वह हमारी प्रगतिके मार्ग में बराबर एक अलंघ्य दीवार बन कर खड़ी रहेगी। अतः हमें इस दीवारको अधिकसे-अधिक प्रयत्न करके गिराना है। हममें से बहुत-से लोगोंके मनमें ऐसा विचार आता दिखता है कि हम अस्पृश्यताको कायम रखकर भी स्वराज्य हासिल कर सकते हैं। उनको इस विचारमें निहित अन्तर्विरोध भी नहीं दिखाई देता। स्वराज्यपर जितना "स्पृश्यों" का हक है उतना ही "अस्पृश्यों" का भी है|नारायणवरम् से एक व्यक्ति लिखता है :

हमारे इलाकेमें पंचमोंके साथ हिन्दू लोग -- और खासकर ब्राह्मण -- बहुत बुरा बरताव करते हैं। गाँवोंमें उन्हें उन गलियोंसे नहीं चलने दिया जाता, जिनमें ब्राह्मणोंकी आबादी है। ब्राह्मणोंसे बातचीत करते समय उन्हें उनसे एक खासी दूरीपर खड़े रहना पड़ता है।

आप तनिक ब्राह्मणोंकी जगह साहबोंको और पंचमोंकी जगह भारतीयोंको रखकर देखिए कि आपको कैसा महसूस होता है। और मुझे तो इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ साहब कुछ ब्राह्मणोंसे लाख दर्जे अच्छे हैं। जबतक हम अपने किसी भाईको उसके जन्मके कारण वर्ण-बहिष्कृत मानकर उसके साथ व्यवहार करते हैं तबतक ईश्वर हमें स्वराज्य नहीं प्राप्त करने देगा। उनका कहना है कि कोई मनुष्य जो कुछ है वह अपने कर्म-फलके कारण ही है। लेकिन मेरा कर्म तो यह नहीं है कि मैं पतितोंपर पत्थर फेंकूं। धर्मका उद्देश्य मनुष्यको उसके कार्यके भारके नीचे दबाये रखना नहीं, बल्कि उसका उद्देश्य मनुष्यका उत्थान करना है। किसी नीच कुलोत्पन्न