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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपर्युक्त पत्र में सहर्ष प्रकाशित कर रहा हूँ। मेरी टिप्पणी निश्चय ही मद्राससे मिली एक शिकायतपर आधारित थी।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-९-१९२१

७५. आखिरी काम

मौलाना मुहम्मद अलीकी गिरफ्तारीकी चर्चा बहुत हुई है। उनकी गिरफ्तारी जब हम मद्रास जा रहे थे, वाल्टेयरमें हुई। यह लेख मैं रेलगाड़ीम, कुछ तार लिखनेके तुरन्त बाद लिख रहा हूँ। गाड़ी वाल्टेयरमें पच्चीस मिनटसे कुछ अधिक समय तक रुकी। मौलाना मुहम्मद अली और मैं एक सभामें भाषण देने स्टेशनसे बाहर जा रहे थे। अभी हम फाटकसे कुछ ही कदम आगे बढ़े थे कि मौलाना मुहम्मद अलीने मुझे पुकारकर वह नोटिस पढ़कर सुनाया, जो उन्हें दिया गया था। मैं उनसे कुछ कदमकी दूरीपर उनके सामने खड़ा था। गिरफ्तार करनेवालोंके दलमें दो गोरे और आधे दर्जन पुलिसके भारतीय जवान थे। उस दलके मुख्य अधिकारीने मौलाना साहबको पूरा नोटिस पढ़ने भी नहीं दिया और झपटकर उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें वहाँसे ले चला। उन्होंने मुस्कराते हुए अलविदा कहा। उसका मतलब मैं समझ गया। मुझे झंडा उठाये रखना था। ईश्वर मुझे अपने-आपको उस साथीके सन्देशके योग्य सिद्ध करनेमें सहायता दें, जिसके साथ काम करना सचमुच गौरवकी बात थी।

मैं सभा-स्थल तक गया। वहाँ मैंने लोगोंसे शान्त रहकर कांग्रेसका कार्यक्रम पूरा करनेको कहा। फिर मैं वापस लौटा और वहां गया, जहाँ मौलाना साहबको हिरासत में रखा गया था। मैंने गिरफ्तार करनेवाले दलके मुख्य अधिकारीसे पूछा कि क्या मैं मौलाना साहबसे मिल सकता हूँ। उसने बताया कि उसे तो आदेश है कि उनकी पत्नी और सेक्रेटरीके अलावा और किसीको नहीं मिलने दे। मैंने बेगम मुहम्मद अली और सेक्रेटरी श्री हयातको हिरासत के कमरेसे बाहर आते देखा।

वाल्टेयर आन्ध्रका एक सौन्दर्य-स्थल है। यह एक सेनेटोरियम ही है। मौलाना साहब इतने सुन्दर स्थानमें गिरफ्तार हुए, इससे मुझे उनसे ईर्ष्या हुई। वे वाल्टेयरमें कुछ दिन रुककर आराम करने और शिष्टमण्डलका विवरण पूरा कर डालने की बात सोच रहे थे। लेकिन बंगालमें उन्हें अप्रत्याशित रूपसे बहुत ज्यादा दिन रुक जाना पड़ा था और उधर मोपलोंका उत्पात शुरू हो गया था, इसलिए उनकी यह योजना असम्भव ही हो गई थी, लेकिन ईश्वरकी कुछ और ही मर्जी थी। वह मौलाना साहबको मजबूरीका आराम देना चाहता था। और मैं जानता हूँ कि वे नजरबन्दीमें खुश हैं।