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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन, अलीबन्धु आज खिलाफतके अलावा कुछ और भी उद्देश्य लेकर चल रहे हैं। वे स्वराज्य चाहते हैं और उन्हें जितनी चिन्ता खिलाफत सम्बन्धी अन्यायका निराकरण करानेकी है, उतनी ही चिन्ता पंजाब के साथ किये गये अन्यायके परिशोधनकी भी है। वे अपनी शान और ईमानके इतने पक्के हैं कि खिलाफत सम्बन्धी अन्यायके निराकरणके बदले भी अपने-आपको बेच नहीं सकते। उनके लिए तो तीनों सवाल अभिन्न हैं, जिन्हें कभी अलग नहीं किया जा सकता। और कुछ अन्यथा होना सम्भव भी नहीं है, क्योंकि एक माँग स्वीकार करने या एक चीज पा लेनेका मतलब है शेष माँगोंका भी स्वीकार किया जाना और शेष चीजें भी पा लेना।

मेरे विचारसे यह गिरफ्तारी एक शुभ लक्षण है। जबतक सरकार साधारण कार्यकर्त्ताओंको गिरफ्तार कर रही थी, तबतक तो वह इस समस्याके साथ खिलवाड़ कर रही थी। जो सरकार लोक-इच्छाके आगे झुकना नहीं चाहती, ऐसी हर सरकार लोकनेताओंको गिरफ्तार करके जन-भावनाको कुचलनेकी कोशिश करती है। भारत-सरकारने अपनी प्रतिष्ठाका नियम यही बना लिया है कि वह नेताओंको गिरफ्तार करती है, उन्हें सजा देती है और जब लोक-इच्छाके आगे झुकने में कोई शोभा नहीं रह जाती तब झुक जाती है।

इसलिए इस गिरफ्तारीको स्वराज्य स्थापनाकी पूर्व पीठिका माना जा सकता है। केवल स्वराज्य संसद् ही जेलके दरवाजे खोल सकती है, वही अलीबन्धुओं और उनके साथी कैदियोंको उपयुक्त सम्मानके साथ जेलसे छुटकारा दिला सकती है; क्योंकि यह लड़ाई अब बिना अन्तिम फैसला हुए रुकनेवाली नहीं है।

अलीबन्धुओं और उनके साथी कैदियोंको हम जो सबसे अच्छी श्रद्धांजलि दे सकते हैं वह यह कि हम समस्त शंका, भय तथा आलस्यको त्याग दें। हम इस बात में शंका करते रहे हैं कि हम अहिंसा और स्वदेशीके बलपर अपने लक्ष्यतक पहुँच सकते हैं। हमें इस बातमें सन्देह रहा है कि हम इसी साल अपना कार्यक्रम पूरा कर सकते है। हमारे मन में भय यह रहा है कि हम शायद आवश्यक बलिदान नहीं कर पायेंगे; और हम अपने कार्यक्रमपर बहुत सुस्ती से अमल करते रहे हैं। तो अब आइए, हम अलीबन्धुओंके साहस और विश्वासका, निर्भीकता और सत्यपरायणताका तथा जागरूक रहकर निरन्तर कर्म-रत रहने के गुणका अनुकरण करें। फिर तो हमें स्वराज्य मिलकर ही रहेगा। मजिस्ट्रेटने आदेशके अन्तमें लिखा था, "इसमें चूक नहीं होनी चाहिए।" ठीक है, सम्बन्धित अधिकारीसे “चूक नहीं हुई ।" बहुतसे अंग्रेज अधिकारियोंने न चूकने के प्रयत्न में अपने प्राण गँवा दिये, और इसके लिए वे प्रशंसाके पात्र हैं। कांग्रेस और खिलाफत भी आपको आदेश, दायित्व, सलाह या इसे जो भी कहिए, देता है कि "इसमें चूक नहीं होनी चाहिए।" अब हमारे पास जितना समय रह गया है, उसमें क्या हम इस ढंगसे काम करेंगे जिससे कांग्रेसको बता सकें कि "हमसे चूक नहीं हुई" । आदेश स्पष्ट हैं :

१. लाख उत्तेजनाके बावजूद अहिंसापर अटल रहिए।

२. कैसी भी कठिन परिस्थिति हो, हिन्दू-मुस्लिम एकताको कायम रखिए।