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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दबाया नहीं जा सकेगा। लेकिन केवल तभी, यदि जरूरत हुई तो इस हठीली सरकारको अपनी इच्छा के आगे झुकाने के लिए भारत सविनय अवज्ञा भी कर सकता है।

यह है इसका राजनीतिक पहलू।

इसलिए मुझे यह देखकर बड़ा दुःख हुआ कि सारे बंगालमें ऐसा एक भी आदमी नहीं है जो कताईका विशेषज्ञ हो और अपना सारा समय और ध्यान हाथ-कताई के सन्देश के प्रचारमें ही लगा रहा हो -- लोगोंको इसकी शिक्षा दे रहा हो, उन्हें इसके लिए संगठित कर रहा हो और सलाह दे रहा हो। मैंने देखा कि आम जनता तो वहाँ यह काम हाथमें लेनेको तैयार है, किन्तु उसे यह नहीं मालूम है कि वह इसे करे किस तरह। और जो बात बंगालको लागू होती है, वही शायद अधिकांश प्रान्तोंको भी लागू होती है। हर प्रान्तमें एक खास स्तरका चरखा होना चाहिए, और विशेषज्ञोंका एक संगठन होना चाहिए, जिससे लोग सलाह और मार्गदर्शन ले सकें। अगर विशेषज्ञोंके ज्ञानका लाभ सुलभ हो तो बहुत-से लोगों में ऐसी सुन्दर, शानदार प्रतिभा है, जिसका बहुत अच्छा उपयोग किया जा सकता था। कलकत्तेके राष्ट्रीय कालेजके हॉलमें पन्द्रह नये-नये किस्मके चरखोंका प्रदर्शन किया गया। अब उनकी उपयोगिता अनुपयोगिताका निर्णय कौन करे? मैंने सब जगह अलग-अलग किस्म के चरखोंका प्रयोग होते देखा। लेकिन ऐसा नहीं देखने में आया कि इन चरखोंकी क्षमता जाँचनेकी कोई कोशिश की गई हो। आज बंगालमें हजारों लोग कताई कर रहे हैं, लेकिन उनके कामको मापनेवाला कोई नहीं है। इसलिए सभी कांग्रेस कमेटियोंको मेरी सलाह है कि प्रत्येक कांग्रेस कमेटी कमसे-कम ऐसे छ: पुरुषों और छः स्त्रियोंको, जिन्हें अपने उद्देश्यमें आस्था हो, इसी दिशामें काम करनेके लिए अलग चुन ले। उन्हें व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए सत्याग्रह आश्रमका मुँह जोहनेकी जरूरत नहीं है। जो कुछ बताया जा सकता है, वह इस पत्र में हर हफ्ते प्रकाशित विशेष लेखों द्वारा बता दिया जाता है। जो लोग इस विषयके विशेषज्ञ बनना चाहते हों, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे उन्हें ध्यान से पढ़ें। लेकिन कोई ऐसा न माने कि केवल उन लेखोंको पढ़कर ही विशेषज्ञ बना जा सकता है। पूर्णता तो अभ्यास करके ही हासिल की जा सकती है। करोड़ों लोग इस कारण कताई करेंगे कि दूसरे कामकाज करनेके बाद भी उनकी कमाईमें जो कमी रह जाती है, उसे पूरा कर सकें; कुछ लोग एक धर्म-कार्य मानकर भी कताई करेंगे, लेकिन कुछको कताईको वैज्ञानिक रूप देने के लिए भी यह काम करना चाहिए। ऐसे लोगोंको हर दिन कमसे-कम आठ घंटे अवश्य कताई करनी चाहिए। और जैसे-जैसे वे अधिक कताई करते जायें, उन्हें पहलेके काते सूतको बादमें काते सूतसे मिलाकर यह भी देखते जाना चाहिए कि वे पहलेकी तुलनामें अब कैसा सूत कातते हैं। उन्हें धुनाई और बुनाई भी सीखनी चाहिए। उन्हें अलग-अलग किस्मकी रुईकी पहचान होनी चाहिए और अलग-अलग किस्मके चरखोंका भी ज्ञान होना चाहिए। उन्हें चरखोंकी साधारण मरम्मत करना भी आना चाहिए।

जबतक हम अपने-आपको सलीके और समझदारीसे सहकारी ढंगपर संगठित नहीं करते तबतक हमें स्वराज्य नहीं मिल सकता। स्वदेशीका मतलब है राष्ट्रीय जीवनके दूसरे बड़े क्षेत्र में असहयोग।