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सन्देश : लँगोटीके सम्बन्धमें

हम बहिष्कार इसलिए कर रहे हैं कि अब हम हाथ-कताई और हाथ-बुनाईके जरिये अपनी जरूरतका कपड़ा तैयार करनेकी स्थितिमें हैं। लेकिन जबतक इस संक्रान्ति कालमें हममें से प्रत्येक व्यक्ति कताई नहीं करने लगता, और जबतक हर प्रान्त अपनी जरूरतका कपड़ा तैयार करनेके लिए आवश्यक व्यवस्था स्वयं नहीं करने लगता तबतक हम बहिष्कारको चालू नहीं रख सकेंगे। और यह सब तभी हो सकता है जब हर प्रान्त में एक खास संख्या में इस विषयके विशेषज्ञ हों।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-९-१९२१

७७. सन्देश : लँगोटीके सम्बन्ध में[१]

मदुरा
२२ सितम्बर, १९२१

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने विदेशी कपड़ेके बहिष्कारका जो कार्यक्रम निर्धारित किया था, उसे पूरा करने के लिए अब हमारे पास कुछ ही दिन शेष हैं। अगर कांग्रेसका प्रत्येक कार्यकर्त्ता, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, पूरा ध्यान बहिष्कारकी ओर ही लगाये तो अब भी बहुत देर नहीं हुई है। अगर हर कोई इस बातका अनुभव करे कि स्वदेशीके बिना -•- अर्थात् विदेशी कपड़ेका बहिष्कार और जरूरत के सभी कपड़ेका उत्पादन हाथ-कताई और हाथ-बुनाईसे किये बिना -•- स्वराज्य नहीं मिल सकता, और स्वराज्य मिले बिना खिलाफत तथा पंजाबके साथ किये गये अन्यायोंका परिशोधन नहीं हो सकता, तो विदेशी कपड़ेका यह वांछित बहिष्कार करने में तथा जरूरतका सारा कपड़ा स्वयं तैयार करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

मैं जानता हूँ कि बहुत-से लोगों के लिए विदेशी कपड़ा छोड़कर एकाएक स्वदेशी अपना लेना कठिन होगा। करोड़ों लोग इतने गरीब हैं कि वे छोड़े हुए विदेशी कपड़े की जगह उपयोग के लिए काफी खद्दर खरीद ही नहीं सकते। उन्हें मैं वही सलाह देता हूँ जो मैंने उस दिन मद्रास के समुद्र-तटपर उपस्थित लोगोंको दी थी। वे एक लंगोटीसे -•- सिर्फ घुटनों तक की धोतीसे -•- ही सन्तोष करें। हमारे यहाँकी जलवायु ऐसी है कि गर्मियोंके दिनोंमें शरीर-रक्षाकी दृष्टिसे कुछ ज्यादा कपड़े जरूरी नहीं होते। पहनावेके बारेमें कोई मिथ्या शिष्टाचार बरतना आवश्यक नहीं है। भारतने संस्कृतिकी कसौटी के रूपमें पुरुषों द्वारा अपना सारा तन ढँकनेपर कभी भी आग्रह नहीं रखा है।

यह सलाह मैं अपनी जिम्मेवारी अच्छी तरह समझते हुए दे रहा हूँ। इसलिए एक उदाहरण सामने रखने के लिए मैं खुद ही, कमसे-कम ३१ अक्तूबर तक के लिए, टोपी और सदरी त्यागकर सिर्फ एक लँगोटी और शरीर-रक्षा के लिए जरूरी होनेपर चद्दरसे ही काम चलाने जा रहा हूँ। अपने पहनावेमें यह परिवर्तन मैं इसलिए कर रहा

  1. देखिए "भाषण : मद्रास में”, १५-९-१९२१।