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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ कि दूसरोंको कोई ऐसा काम करनेकी सलाह देनेसे बराबर बचता रहूँ जो मैं स्वयं न कर सकूं। इसका एक कारण यह भी है कि मैं आगे बढ़कर उन लोगोंके लिए रास्ता आसान बना देना चाहता हूँ जिन्हें विदेशी कपड़ेसे बनी पोशाक छोड़ने के बाद अपने पनावेमें परिवर्तन करना मुश्किल लग रहा है। इस त्यागको मैं एक शोक-चिह्नके रूपमें भी अपने लिए जरूरी मानता हूँ। देशके जिस हिस्से में मैं रहता हूँ उस हिस्सेमें नंगे सिर और नंगे बदन रहना शोकका चिह्न माना जाता है। और हम शोककी स्थितिमें हैं, यह बात तो इस तथ्यको देखते हुए मेरे सामने अधिकाधिक स्पष्ट होती जा रही है कि वर्षका अन्त निकट है और हमें अभीतक स्वराज्य नहीं मिल पाया है। लेकिन, मैं यह स्पष्ट बता देना चाहता हूँ कि जबतक मेरे साथी कार्यकर्त्ताओंको अपने कामके खयालसे जरूरी न लगे तबतक मेरी ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं है कि वे भी टोपी और सदरी पहनना छोड़ दें।

मेरा निश्चित मत है कि अगर पर्याप्त कार्यकर्त्ता हों तो प्रत्येक प्रान्त और प्रत्येक जिला एक ही महीने में अपनी जरूरतके लायक काफी कपड़ा तैयार कर सकता है। और मेरी सलाह है कि इस उद्देश्यको ध्यान में रखते हुए एक महीने के लिए स्वदेशीके अलावा और सभी गतिविधियाँ स्थगित रखी जायें। शराबखोरोंपर इस बातके लिए भरोसा कर सकते हैं कि वे स्वयं इस शुद्धीकरणकी नई भावनाको पहचानेंगे। मैं तो धरनेदारोंको भी शराबकी दुकानोंसे हटा लेना चाहता हूँ। हर असहयोगीको मैं सलाह दूंगा कि कारावासको वह अपने जीवनकी एक साधारण बात माने और उसकी कोई परवाह न करे। यदि अक्तूबर मास-भर सभी सभा-सोसाइटी तथा उत्तेजनात्मक भाग-दौड़के कार्योंसे अलग रहकर हम सिर्फ स्वदेशी कपड़े के उत्पादन और लोगोंसे विदेशी कपड़े माँगकर इकट्ठा करनेका काम करेंगे, तभी हम ऐसा शान्त और उद्वेगविहीन वातावरण तैयार कर सकेंगे जिसमें जरूरत पड़ने पर सविनय अवज्ञा प्रारम्भ कर सकें। लेकिन मेरा यह निश्चित विश्वास है कि यदि हम पूर्ण स्वदेशीके लिए आवश्यक चरित्र-बल, संगठन-क्षमता तथा आदर्श आत्म-संयमकी शक्तिका परिचय देंगे तो और कुछ किये बिना हमें स्वराज्य मिल जायेगा।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २३-९-१९२१