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७८. भाषण : तिरुप्पत्तूरमें

२२ सितम्बर, १९२१

तिरुपत्तूरके नागरिकोंने महात्माजीको तमिलमें एक अभिनन्दन-पत्र तथा एक थैली भेंट की। महात्मा गांधीने उत्तरमें कहा कि भारत में बाईस करोड़ लोगोंके पास सालमें छः महीने कोई काम नहीं रहता, और यदि हर घरमें एक चरखा हो, जिसे घरका प्रत्येक सदस्य फुर्सतके समय कुछ घंटे चलाया करे, तो निःसन्देह हम सारे भारतको पर्याप्त स्वदेशी वस्त्र प्रदान कर सकते हैं। बत्तीस करोड़ लोगोंके वस्त्रके लिए जितनी कपासकी जरूरत है, देशमें उससे ज्यादा ही पैदा होती है। जबतक सभी भारतीयोंके लिए हाथका कता-बुना कपड़ा नहीं मिलता, तबतक हमें एक लँगोटी पहनकर भी बाहर निकलनेको तैयार रहना चाहिए। हमें हाथका बना कपड़ा पहनने में गर्व अनुभव करना चाहिए, भले ही वह कितना ही खुरदरा हो। इसके बाद महात्माजीने अपना पहनावा बदलनेका कारण स्पष्ट करते हुए कहा कि जबतक अमीर-गरीब सभीको जरूरतके लायक पूरा स्वदेशी कपड़ा नहीं मिलने लगता, मैं तबतक कपड़ेका एक छोटासा टुकड़ा ही पहना करूँगा। फिर महात्माजीने कहा कि अभिनन्दन-पत्र में जो यह बताया गया है कि तिरुप्पत्तूरके नागरिकोंने शराब पीना लगभग बिलकुल छोड़ दिया है उससे मुझे बहुत ज्यादा खुशी हुई है। मुझे आशा है कि न केवल तिरुप्पत्तूरमें, वरन् इसके आसपास की जगहों में भी शराब पीना बिलकुल बन्द हो जायेगा। इसके बाद उन्होंने श्रोताओंसे पंचम लोगों के साथ बराबरीका व्यवहार करनेका अनुरोध किया।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-१९२१

७९. भाषण : कनाडुकातनमें

२२ सितम्बर, १९२१

मित्रो,

आप लोगोंने मुझे जो अभिनन्दन-पत्र और थैलियां अभी भेंट की हैं, उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। परन्तु केवल थैलियाँ और अभिनन्दन-पत्र भेंट करनेसे हमें स्वराज्य नहीं मिल सकता। यदि आप स्वराज्य चाहते हैं, यदि आप पंजाब तथा खिलाफत के साथ किये गये अन्यायोंका निराकरण कराना चाहते हैं, अगर आप अलीबन्धुओंकी रिहाई चाहते हैं तो आपको स्वदेशी व्रत धारण करना चाहिए और सभी विदेशी वस्त्र त्याग देने चाहिए। यह काम पुरुषों और स्त्रियों, दोनोंको करना चाहिए। आपको हर घरमें कातना और बुनना शुरू करवाना चाहिए। आपको अपने धनपर