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८१. भाषण : देवकोट्टामें

२२ सितम्बर, १९२१

मित्रो,

मुझे जो अभिनन्दन-पत्र और थैलियाँ अभी भेंट की गई हैं, उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। चूंकि मैं कोई कीमती उपहार स्वीकार नहीं करता, इसलिए आपकी चाँदी और सोनेकी तश्तरियाँ तिलक स्वराज्य-कोषको दे दी जायेंगी। इस सबमें निहित आपके स्नेह की मैं कद्र करता हूँ, किन्तु साथ ही मैं आपसे यह अवश्य कहूँगा कि इनसे बहुत कम सन्तोष मिल पाता है। इस हाथसे कते बढ़िया सूतको देखकर और यह जानकर कि आपके यहाँ चालीस चरखे रोज चलते हैं मुझे कुछ सन्तोष अवश्य मिलता है। लेकिन इतनी बड़ी जगह के लिए चालीस चरखे समुद्र में बूंदके समान हैं। जिस तरह यहाँ हर घरमें एक घोड़ा है, उसी तरह हर घरमें एक चरखा भी जरूरी होना चाहिए। और मैं हर स्त्री-पुरुषसे आशा करता हूँ कि अपने विगत पापों के प्रायश्चित्त-स्वरूप वह प्रतिदिन फुर्सत के वक्त थोड़ी देर सूत कातेगा। जबतक मैं आपको विदेशी सूतसे बनी धोतियाँ पहनते देखूंगा, मैं सन्तुष्ट नहीं हो सकता। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि आप मेरी तरह मोटेसे-मोटा कपड़ा पहना करेंगे, तो भी आप अपना लेनदेनका व्यापार न केवल भारतमें वरन् रंगूनमें और अन्य स्थानोंमें भी अच्छी तरह चला सकेंगे। परन्तु यदि आप बढ़िया पोशाक पहनते हैं और यदि आप हमारी बहनोंके हाथसे कते-बुने वस्त्र पहनने से इनकार करते हैं तो भारतको स्वराज्य नहीं मिल सकता। यदि आपका मन्तव्य स्वदेशी कार्यक्रमको पूरा करनेका है तब तो माना जायेगा कि आपके अभिनन्दन पत्र और थैलियाँ अच्छी चीजें हैं। लेकिन अगर ये अभिनन्दन-पत्र और थैलियाँ इस बातकी सूचक न हों कि स्वराज्य प्राप्त करने, पंजाब तथा खिलाफत के साथ किये गये अन्यायोंका निराकरण कराने और अली-बन्धुओंको रिहा करने के प्रयत्न में सहयोग करनेका आपने पूर्ण और अन्तिम संकल्प कर लिया है तो ये बिलकुल बेकार हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कलसे आप अपने सभी विदेशी कपड़ोंको छोड़ देंगे और केवल हाथके कते-बुने कपड़े ही इस्तेमाल करेंगे। मैं यह उम्मीद भी करता हूँ कि आपके गाँव में नशाखोरी नहीं है। यदि हो तो मुझे आशा है कि आप उस अभिशापको दूर भगायेंगे। हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता जैसी कोई चीज नहीं है और अपने पंचम भाइयोंके साथ अपने सगे भाइयोंकी तरह बर्ताव करना हमारा धर्म है। आन्ध्रकी तरह यहाँ भी मैं देखता हूँ कि मर्द लोग हीरेकी अंगूठियाँ और बालियाँ पहनने के शौकीन हैं। मेरी आकांक्षा है कि मैं आपको अपनी प्राचीन सादगी पुनः अपनानेके लिए राजी कर सकूँ और वे सब आभूषण तिलक स्वराज्य-कोष या ऐसे ही किसी अन्य कोषमें भिजवा दूं। मैं एक बार फिर आपको इन अभिनन्दन पत्रों और थैलियोंके लिए धन्यवाद