देता हूँ और इस आशाके साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ कि आप सब स्वदेशी के कार्यक्रमका अनुसरण करेंगे।
हिन्दू, २६-९-१९२१
८२. पत्र : महादेव देसाईको
२३ सितम्बर, १९२१
मद्रास आनेके बाद मुझे तुम्हारा एक भी पत्र नहीं मिला है। स्वदेशी के सम्बन्धमें तो मद्रासमें कुछ भी नहीं किया गया, ऐसा कहा जा सकता है। देखना है कि अब क्या होता है ? मैंने पोशाकमें भारी फेर-बदल किया है; तुमने देखा ही होगा। मुझसे रहा नहीं गया।
मद्रासमें राजगोपालाचारीने खूब मेहनत की है तथापि मद्रास मुझे बंगालसे भी अधिक पिछड़ा हुआ जान पड़ा। भ्रमणसे और जयघोषके नारोंसे अब मैं ऊब गया हूँ। उम्मीद है, तुम्हारी तबीयत अच्छी होगी। चार तारीखको बम्बई आ सको तो आना।
सरकारकी ओरसे कालीकट न जानेका आदेश पत्र[१] प्राप्त होनेके बाद मेरे लिए सविनय भंग करना अत्यन्त आसान हो गया है।
यह पत्र मैं तुम्हें तिन्नेवेली जाते हुए लिख रहा हूँ। राजगोपालाचारीकी तबीयत बहुत खराब रहती है। उन्हें हल्का ज्वर, खाँसी और दमा है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस० एन० ११४१५) की फोटो-नकलसे।
- ↑ पत्रके पाठके लिए देखिए “टिप्पणियाँ ", २२-९-१९२१ का उप-शीर्षक “ प्रमाण "।