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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं, जब हम उनका अनुकरण करें। अभी कुछ समय पहले तक अलीबन्धु एक मर्यादाके भीतर आराम और विलासकी जिन्दगी बिताते थे, किन्तु अब वे खद्दर पहन रहे हैं, डील- डौलमें मोटे होनेके कारण उन्हें खद्दर भी मोटे किस्मका पहनना पड़ता है। हमें उन्हींकी तरह इस बातका अहसास होना चाहिए कि स्वराज्य तथा खिलाफत और पंजाब के साथ किये गये अन्यायोंका निराकरण इस बातमें निहित है कि हम अपने घरोंमें चरखेको अपनायें, विदेशी वस्त्रोंका पूरा बहिष्कार करें, और वही पहन कर सन्तोष करें जो हम अपने घरोंमें तैयार कर सकें। इसलिए मुझे बड़ा दुःख हुआ, जब सत्याग्रहके दिनोंके मेरे एक मित्र और सहयोगी विदेशी कपड़े पहने हुए मुझे एक मोटा-सा पुष्पहार भेंट करने आये। मैंने उनसे पूछा कि आपने खद्दर क्यों नहीं पहन रखा है, क्यों आपने अपने पूरे शरीरपर विदेशी वस्त्र ही धारण कर रखा है? उन्होंने जो जवाब दिया, वह भी दुःखद था। उन्होंने कहा कि पर्याप्त खद्दर उपलब्ध ही नहीं है। और आप देख रहे हैं कि ऐसी ही आपत्ति करनेवालोंको उत्तर देने के लिए मैं अब सिर्फ एक लँगोटी पहनता हूँ और मौलाना आजाद सोबानी भी उतना ही कपड़ा पहनते हैं जितना उनके धर्मकी दृष्टिसे जरूरी है। तो अब क्या आप मुझसे यह कहेंगे कि आपके जिलेमें इतना खद्दर भी नहीं मिलता जिससे आप लोग एक-एक लँगोटी भी धारण कर सकें? आपका जिला तो भारतमें सबसे अधिक कपास पैदा करनेवाले जिलोंमें से है। इसलिए अगर इस जिलेके लोग कहते हैं कि उनके पास एक लँगोटी लपेटने लायक भी खद्दर नहीं है तो यह वैसा ही होगा जैसे बहुत बढ़िया और काफी गेहूँ पैदा करनेवाले लोग कहें कि उन्हें खानेको पर्याप्त भोजन नहीं मिलता। अभी डेढ़ सौ वर्ष पहले तक भारतकी लगभग हर औरत सुन्दर सूत कातना जानती थी और लाखों भारतीय उस सूतसे कपड़ा बुनना जानते थे। और मैं चूंकि भोजन बनाना और बुनाई करना, ये दोनों काम जानता हूँ, अतः मैं कह सकता हूँ कि बुनाई भोजन बनानेसे आसान काम है। यदि आप सदियोंकी इस यातनापूर्ण गुलामीसे छुटकारा पाना चाहते हैं, यदि आप खिलाफतके साथ किये गये अन्यायका निराकरण कराने में मुसलमान भाइयोंको मदद देना चाहते हैं, यदि यहाँके मुसलमानोंके हृदयमें खिलाफतके लिए कोई स्थान और प्रेम है -- और मुझे सन्देह नहीं कि ऐसा है -- तो ऐसी अपेक्षा करना क्या बहुत ज्यादा सोचना होगा कि आप अपनी आवश्यकताओंको घटाकर कमसे कम कर दें और सादेसे-सादा खद्दर पहनें ? हमने जिस बातकी ठानी है वह कोई खिलवाड़ नहीं, बल्कि एक गम्भीर बात है। नागपुर कांग्रेस में भारतके सभी हिस्सोंसे आये १४,००० प्रतिनिधियोंने जब इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करनेके संकल्पकी घोषणा की और एक ठोस कार्यक्रम बनाया, जिसके एक प्रमुख अंगके रूपमें स्वदेशीको स्थान दिया, तो वे देशके साथ कोई मजाक नहीं कर रहे थे। अपने बुढ़ापेके दिनोंमें हकीम अजमल खाँने[१] खद्दर अपनाया। डा० अन्सारी,[२]

  1. १८६५ - १९२७; प्रसिद्ध हकीम और राजनीतिज्ञ, जिन्होंने खिलाफत आन्दोलनमें प्रमुख भाग लिया| भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष, १९२१।
  2. मुख्तार अहमद अन्सारी (१८८०-१९३५); राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता, इंडियन मुस्लिम लीगके अध्यक्ष, १९२०; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष, १९२७।