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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पद और स्थान वह उन्हें दे दे जिन्हें इनकी इच्छा है। वह स्वयं तो इसी एक तथ्य में विश्वास रखकर सर्वथा आश्वस्त रहता है कि अपने ज्ञानसे मानवताकी जो सेवा वह कर रहा है वही उसे जीवनमें सम्मानास्पद स्थानका पात्र बना देती है। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि हमें स्वराज्य पाना है -- चाहे इस साल हो या सौ साल बाद -- तो वह हम तभी पा सकते हैं जब हिन्दुओंमें परस्पर एकता हो और वे अपनी सारी गन्दगी, भूल, अन्धविश्वास और पाप धो डालें। इस्लाममें जोकुछ उत्तम है उसकी दृष्टिसे यदि मैं अपने मुसलमान भाइयोंसे स्पर्धा नहीं कर सका तो मैं अपने आपको उनका अयोग्य सहभागी मानूंगा। इस प्रकार आप देखते हैं कि सभी समस्याएँ अन्ततः दो ही बातोंमें समाहित हैं: पहली तो यह कि हिन्दुओं और मुसलमानों -- दोनोंको स्वदेशी कार्यक्रमको कार्यान्वित करना चाहिए और विदेशी वस्त्रोंका पूरा बहिष्कार करना चाहिए, और दूसरी यह कि हिन्दुओंको अस्पृश्यताके अभिशाप और उससे सम्बन्धित सभी दोषोंसे छुटकारा पाना चाहिए। अली-बन्धुओं और उनके सहयोगियोंकी तो यही इच्छा है कि अब अगर वे जेलसे छूटें तो स्वराज्य-संसदके प्रथम कानूनके आदेशसे ही छूटें। अब मैं यही कामना करता हूँ कि ईश्वर आपकी और मेरी सहायता करे ताकि हम इसी वर्ष स्वराज्यकी शर्त पूरी कर सकें, खिलाफत और पंजाबके प्रति किये गये अन्यायोंका निराकरण कर सकें और आज जेलमें पड़े अलीबन्धुओंको मुक्त देख सकें। मुझे आशा और विश्वास है कि आप मौलाना सोबानीकी बात भी उतने ही ध्यानसे सुनेंगे जितने ध्यानसे आपने मेरी बात सुनी।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २७-९-१९२१


८५. भारतके मुसलमानोंसे

मदुरा
२४ सितम्बर, १९२१

प्यारे देशभाइयो,

वैसे तो मौलाना शौकत अली और मौलाना मुहम्मद अलीकी गिरफ्तारीसे हर भारतीयका हृदय दुःखी है, किन्तु मैं जानता हूँ कि आप लोगोंपर क्या गुजर रही होगी। दोनों बहादुर भाई पक्के देशप्रेमी हैं, किन्तु वे पहले मुसलमान हैं और बादमें और कुछ। और हर धार्मिक वृत्तिके आदमीके साथ बात ऐसी ही होनी चाहिए। दोनों भाइयोंका जीवन पिछले कई वर्षोंसे उन सभी चीजोंका प्रतीक रहा है जो इस्लामके सबसे अच्छे और उदात्त गुण माने जाते हैं। भारतमें इस्लामकी प्रतिष्ठा बढ़ानेके लिए जितना इन दोनों भाइयोंने किया उतना अन्य किन्हीं दो मुसलमानोंने नहीं किया है। उन्होंने खिलाफतके पक्षको इतना आगे बढ़ाया है जितना किन्हीं दो भारतीय मुसलमानोंने नहीं बढ़ाया है, कारण, वे सत्यपर डटे रहे हैं, और जब वे छिन्दवाड़ामें नजरबन्द थे तब भी उन्होंने जैसा महसूस किया वैसा स्पष्ट कहनेका साहस दिखाया। उनकी