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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमें जो चीज विजय दिलायेगी वह बड़ी-बड़ी सभाओं और प्रदर्शनोंका आयोजन नहीं, बल्कि शान्ति और धीरजके साथ कष्ट सहन करना है। हम जितनी जल्दी और जितने स्पष्ट रूपसे इस तथ्यको पहचानेंगे, हमारी विजय उतनी ही अधिक निश्चित हो जायेगी और हम उतनी ही जल्दी विजयी होंगे।

मैंने आपके पक्षको अपना पक्ष मान लिया है, क्योंकि उसे मैं न्यायसम्मत मानता हूँ। आपके श्रेष्ठ और अग्रणी लोगोंसे मैंने जाना है कि खिलाफत एक आदर्श है। आप किसी अन्यायको या किसी कुशासनको कायम रखने के लिए नहीं लड़ रहे हैं। आप तुर्कीका समर्थन इसलिए कर रहे हैं कि वे यूरोपके सभ्य-शिष्ट बाशिन्दे हैं और यूरोपीयों तथा विशेषकर अंग्रेजोंके मनमें उनके प्रति पूर्वग्रह समाया हुआ है -- जिस पूर्वग्रहका कारण यह नहीं है कि तुर्क लोग मनुष्य के रूपमें दूसरोंसे बुरे हैं, बल्कि यह है कि वे मुसलमान हैं और कमजोर लोगोंका तथा उनके देशका शोषण करनेकी आधुनिक भावना उन्हें गंवारा नहीं है। तुर्कोंके पक्षमें लड़ने का मतलब यह है कि आप अपने धर्मकी प्रतिष्ठा और पवित्रताको बढ़ाने के लिए लड़ रहे हैं।

इसलिए स्वाभाविक है कि आपने अपने लक्ष्यतक पहुँचनेके लिए भी पवित्र तरीके ही अपनाये हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हिन्दू और मुसलमान दोनोंने अपनी नैतिक शक्ति बहुत हदतक खो दी है। हम दोनों अपने-अपने धर्मके अयोग्य प्रतिनिधि-मात्र रह गये हैं। बजाय इसके कि हममें से प्रत्येक ईश्वरकी सच्ची सन्तान बने, हम दूसरोंसे हमारे धर्मकी रक्षा करने, बल्कि हमारे लिए मर मिटने तक की अपेक्षा रखते हैं। लेकिन अब हमने एक ऐसा तरीका चुना है जो हमें, हममें से प्रत्येकको, ईश्वरकी ओर उन्मुख होनेको बाध्य करता है। असहयोगकी मान्यता है कि हमारा विरोधी जिसके साथ हम असहयोग कर रहे हैं, ऐसे तरीकोंका सहारा ले रहा है जो उतने ही आपत्तिजनक हैं जितना आपत्तिजनक वह उद्देश्य है जिसे वह पूरा करना चाहता है। इसलिए हम ईश्वरकी कृपाके भागी तभी होंगे जब अपने संघर्षके लिए अपने विरोधियोंसे भिन्न तरीके चुनेंगे। हमने अपने लिए यह बहुत बड़ा दावा किया है, और अगर हमारे तरीके सरकार द्वारा अपनाये गये तरीकोंसे सचमुच सर्वथा भिन्न होंगे तो हम उतने ही कम समयमें सफलता प्राप्त कर सकेंगे जितना कम समय हमने इसके लिए निर्धारित किया है।

अतः हमारे आन्दोलनकी आधारशिला पूर्ण अहिंसा है, जब कि सरकारका अन्तिम आश्रय हिंसा है और जिस प्रकार बिना प्रतिरोधके कोई ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती, उसी प्रकार जब हम सरकारकी हिंसाका प्रतिरोध नहीं करेंगे तो यह गतिशून्य हो जायेगी। लेकिन हमारी अहिंसा सच्ची अहिंसा तभी मानी जायेगी जब हम मन, वचन और कर्म, हर तरहसे अहिंसक बरताव करें। अगर आपने अहिंसाको एक कार्य-साधक नीतिके रूपमें अपनाया हो, तो उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जबतक आप अहिंसाकी प्रतिज्ञासे बँध हुए हैं, तबतक अगर आप किसीके प्रति मनमें भी हिंसाका भाव लाते हैं तो वह उस प्रतिज्ञाका उल्लंघन होगा। इसके वितरीत, अपने अहिंसाके कार्यक्रममें हमारी अन्ध-आस्था होनी चाहिए, और अहिंसाका यह कार्यक्रम इस बातका आग्रह करके चलता है कि मन, वचन और कर्ममें परस्पर कहीं कोई असंगति नहीं होनी