प्रेमभाव होना चाहिए, लेकिन मैं इसका भी अभाव देखता हूँ। दुःख तो यह है कि दोनोंमें धर्मका अभाव है। इतना कहने और स्वीकार करनेके बाद मैं अपनी मान्यता भी बताये देता हूँ। स्कूल आदिके सम्बन्धमें हमने जो कदम उठाया है उससे जनताको समग्रतः लाभ हुआ है।
भाई शुक्लके[१] त्यागपत्रके सम्बन्धमें मुझे कोई जानकारी नहीं है। मणिलालके[२] कड़े स्वभावको मैं अच्छी तरह जानता हूँ। इन बातोंके सम्बन्धमें प्रत्येक स्थानपर जो कदम उठाये जाने चाहिए सो मैं उठा रहा हूँ। यह भीषण युद्ध है, लेकिन अन्ततः लोगोंकी भावना धार्मिक हो जायेगी, यह सोचकर मैं इसमें पड़ा हुआ हूँ। अनेक लोगोंके जीवनमें जब मैं सुन्दर परिवर्तन देखता हूँ तब मुझे बहुत आनन्द होता है। अनेक लोग सिर्फ दम्भका पोषण करनेके लिए ही इसमें दाखिल हुए हैं, यह देखकर मुझे दुःख होता है। लेकिन मैं कौन हूँ? मैं सिर्फ तटस्थ भावसे इस युद्धको चला रहा हूँ, इसीलिए निश्चिन्त हूँ। और इसी कारण मुझे विश्वास है कि ईश्वर मुझे पापोंसे उबार लेगा।
आपने जो श्लोक[३] उद्धृत किया है वह आपने मुझे सुनाया था, ऐसा मुझे याद पड़ता है। उसे समझकर ही मैं यह गाड़ी खींच रहा हूँ। गाड़ी टूटी हुई होगी अथवा उसमें बैठनेवाला गाफिल होगा तो इसके लिए ईश्वर मुझे दोष देगा ?
किसी दिन हम मिलेंगे तब विस्तारसे बातचीत करेंगे।
मैं दो तारीखको बम्बई पहुँचनेकी उम्मीद रखता हूँ।
मोहनदासके वन्देमातरम्
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१७६) की फोटो नकल तथा जी० एन० ५८६३ से ।
८७. अली-भाइयोंकी जीत
अली-भाई गिरफ्तार कर लिये गये, इसे मैं उनकी जीत मानता हूँ। और उनकी जीत हमारी जीत है, क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि अब स्वराज्य के सूर्यकी किरणें फूट चुकी हैं। जब बच्चा जन्म लेता है तब माँको घोर कष्ट होता है। पौ फटनेसे पहले अन्धेरा बढ़ जाता है। इस प्रसंगमें हम 'फटना' शब्दका प्रयोग करते हैं, उससे यही अर्थ सूचित होता है।
मैं अली-भाइयोंकी कैदके सम्बन्धमें भी ऐसा ही मानता हैं। दूसरे बहुतसे लोग भी गिरफ्तार किये गये हैं। अभी और भी अधिक लोग गिरफ्तार किये जायेंगे। महत्त्व तो उनकी गिरफ्तारीका भी है फिर भी अली-भाइयोंकी गिरफ्तारीका जो महत्त्व है वह दूसरे लोगोंकी गिरफ्तारीका नहीं है।