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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अली-भाइयोंने स्वराज्यकी प्राप्तिके निमित्त यथाशक्ति प्रयत्न किया है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि उनका बलिदान पवित्र है। उन्होंने अपनी अहिंसाकी प्रतिज्ञाका पूरा पालन किया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके भाषण में तीखापन या कड़वापन नहीं होता था, किन्तु उन्होंने अपनी हिंसाकी भावनापर अंकुश रखा। हिंसाकी भावनापर अंकुश रखनेका अर्थ सच्ची बात छिपाकर लोगोंको शान्त रखना नहीं है; यह सरकार असह्य है ऐसा ज्ञान होनेपर भी अहिंसक बने रहना, यह हिंसापर अंकुश रखनेका सच्चा अर्थ है।

अली-भाइयोंने अपना रोष प्रकट किया है। उन्होंने लोगोंके सामने सरकारके काले कारनामोंका नग्न चित्र खींचा सही किन्तु, इसके बावजूद लोगोंको अपनी दलीलोंसे और अपने कार्यसे अहिंसक रहनेकी ही शिक्षा दी।

उन्होंने अहिंसाको समयोपयोगी मानकर अपनाया है। वे मेरे जैसे लोगोंकी तरह यह नहीं मानते कि अहिंसा सार्वकालिक धर्म है और हमें हर समय और हर प्रसंगपर अहिंसक रहना चाहिए। इसके विपरीत वे मानते हैं कि इस समय और इस प्रसंगपर अहिंसा ही उनका परम धर्म है। उन्होंने दूसरे लोगोंको भी यह बात स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया है। यदि वे चाहते तो खुद किसीका खून कर सकते थे या करा सकते थे, फिर चाहे इसमें उन्हें भी क्यों न मरना पड़ता। उन्होंने मृत्युका भय तो छोड़ ही दिया है, किन्तु व्यवहारकुशल और धर्मपरायण होनेके कारण उन्होंने देखा कि गुस्सेमें आकर किसीको मार देना अपराध है और इस्लाममें इसकी मनाही है। उन्होंने समझ लिया कि इस्लाममें ऐसे प्रसंगोंका उल्लेख है जिनमें हिंसा की जा सकती है किन्तु वर्तमान अवसर उन प्रसंगोंमें नहीं आता और यह बात उन्होंने दूसरे लोगोंको भी अच्छी तरह समझाई।

इसीलिए मैं कहता हूँ कि उन्होंने अपनी अहिंसाकी प्रतिज्ञाका पूर्ण पालन किया है और इसके बावजूद वे वीर हैं और निर्भय हैं। उनकी धर्मसेवा और लोकसेवापर कोई भी शंका नहीं कर सकता। जहाँ निर्भयता, वीरता और सेवाका संगम होता है वहाँ बलिदानकी चरम सीमा होती है। बलिदानका परिणाम मनोवांछित फल देनेवाला होता है। इस कारण मैं यह मानता हूँ कि अब हमारी जीतका, स्वराज्य पानेका, और खिलाफत एवं पंजाब के मामलों में न्याय प्राप्त करनेका समय आ गया है।

किन्तु इस जीतकी शर्तें हैं। एक व्यक्तिके किये हुए यज्ञका फल दूसरे व्यक्तिको तभी मिलता है जब दूसरा व्यक्ति भी उस यज्ञको स्वीकार करता है। अली-भाइयोंके यज्ञको जब हम अपना यज्ञ बना लेंगे तभी हमारी जीत होगी। अपना बनानेका अर्थ है, जैसा उन्होंने किया वैसा हम भी करें। हम उनके साहस, उनके अभय और उनके सेवाभावका अनुकरण करें। यदि मुसलमानोंके मनमें ऐसा दुर्बल विचार आये कि वे तो जेल गये, अब खिलाफत आन्दोलनको कौन चलायेगा, तो इससे यही समझा जायेगा कि वे अली-भाइयोंको नहीं समझ सके। हिन्दू अथवा मुसलमान कायरोंकी तरह ऐसा सवाल नहीं उठायेंगे कि वे तो जेल चले गये अब स्वराज्यकी गाड़ीको कौन खींचे। अब हमें नेताओंकी, मार्गदर्शकों की जरूरत कम ही रह गई है। यदि हम यह कहें कि बिलकुल नहीं रही है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमने मार्ग तो जान लिया है