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अली-भाइयोंकी जीत

और देख लिया है। हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों के लिए तीन शर्तोंका पालन करना अनिवार्य है। शान्तिका पालन, हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकता और स्वदेशीके कार्यक्रमका अमल| सभी धर्मोके लोगोंको समान रूपसे इस कर्त्तव्यका पालन करना हैं। हिन्दुओंको एक काम और करना है -- उन्हें अस्पृश्यताके मैलको धोना है।

मोपलोंने शान्ति-भंग करके व्यर्थ ही आत्मनाश किया है। उन्होंने यही सिद्ध किया है कि यदि हम शान्ति नहीं रखेंगे तो हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकताकी रक्षा नहीं की जा सकेगी। इसलिए सरकार हमें चाहे खिझाये तो भी हमें रोष नहीं करना चाहिए और अपनी स्थिरचित्तता नहीं छोड़नी चाहिए।

जिस तरह शान्तिकी रक्षा करना हमारा धर्म है उसी तरह हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकताको कायम रखना भी हमारा धर्म है। कुछ मोपले पागल बन गये इससे सब मुसलमान तो खराब नहीं माने जा सकते। तीन वर्ष पहले शाहाबादमें हिन्दू पागल हो गये थे, उससे सभी हिन्दू तो खराब नहीं माने जायेंगे। किन्हीं दो पक्षोंमें एकता होनेका अर्थ ही यह है कि दोनों पक्षोंमें झगड़ा हो जाये तो भी वे एक-दूसरेके शत्रु न बनें और झगड़ेका निपटारा शान्तिपूर्वक कर लें। हम कह सकते हैं कि परिवारमें सामान्यतः एकता होती है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि परिवारके लोग आपस में कभी लड़ते ही नहीं। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हम एकता कायम रखनेका प्रयत्न करते-करते कभी-कभी लड़ भी पड़ेंगे। किन्तु आपसमें लड़नेपर भी हमारे नेता ऐसे होंगे कि वे हमें सदा अंकुशमें रखेंगे। यदि मुसलमान या मोपला नेता मोपलोंके पागलपनकी सराहना करते और इसकी निन्दा न करते तो हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकता जोखिम में पड़ जाती, यह सच है। किन्तु मुझे नहीं लगता कि ऐसा एक भी मुसलमान है जिसने मोपलोंके पागलपनको अच्छा बताया हो। कमसे-कम मैं तो ऐसे एक भी व्यक्तिको नहीं जानता। ऐसा हो या न हो किन्तु यह बात तो एक बालक भी समझ सकता है कि यदि हिन्दू और मुसलमान लड़ेंगे तो हमें किसी तीसरेकी जरूरत पड़ेगी ही। इसलिए हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकता स्वराज्यकी दूसरी जरूरी शर्त है।

इतनी ही जरूरी शर्त स्वदेशीका व्यवहार और चरखेका प्रचार है। चरखा हिन्दू-मुसलमान ऐक्यकी, हमारी अहिंसाकी, हमारे नियमपालनकी, हमारी परिश्रमशीलताकी, योजना-शक्तिकी, हमारी व्यापारिक शक्तिकी, हमारी परोपकार-वृत्तिकी, निर्धनों के प्रति हमारे प्रेमकी और अपने स्त्रीवर्गकी रक्षा करनेकी हमारी इच्छाकी निशानी है। अकेले हिन्दू चरखा चलाते हैं तो हिन्दुओंको लाभ होगा किन्तु उससे स्वराज्य नहीं मिलेगा। जिस समय हमें क्रोध आ रहा हो, हमारा रक्त उबल रहा हो उस समय हमें चरखा चलाना अच्छा नहीं लगता। चरखा अहिंसाका प्रतीक है और अपनी आजीविका कमाने के सम्बन्धमें हमारे मनमें जो भय बैठ गया है उसको दूर करनेका साधन है। इसलिए जबतक घर-घरमें चरखा नहीं चलता तबतक यह सिद्ध नहीं होता कि हम अहिंसक हैं और हममें एकता है।

चरखे के अन्तर्गत करघा और पींजन आदि वस्तुएँ भी आ जाती हैं। जब चरखा चलेगा तब भारतमें फिर चमक आयेगी। यदि चरखा नहीं चलेगा तो विदेशी कपड़ेका