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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहिष्कार नहीं होगा और यदि हो जायेगा तो वह टिकेगा नहीं। हम मिल-मालिकोंसे सहायता मांगते हैं और हमें विदेशी कपड़े के व्यापारियोंके सहयोग की जरूरत भी है, किन्तु अन्तमें तो हमारी सफलताका आधार हम स्वयं ही हैं। "आप सच्चे तो जग सच्चा।" सच्चे मनुष्यको तो कोई ठग ही नहीं सकता, इसलिए हममें से हरएकको विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करना चाहिए और कपासकी किसी भी प्रक्रियामें जुट जाना चाहिए।

अली-भाइयोंकी रिहाईकी अनिवार्य शर्तों अब हमें मालूम हो गई हैं। ये शर्तें तीन होनेपर भी अन्तमें एक स्वदेशीमें ही आ जाती हैं, क्योंकि इसमें पहली दो शर्तें छुपी हुई हैं। स्वदेशीको पूरी तरह अपनाने में ही स्वराज्य निहित है। और स्वराज्य मिलनेपर स्वराज्य सभाके पहले अधिवेशनका पहला काम अली-भाइयों और दूसरे असहयोगी कैदियोंको रिहा करना ही होगा।

ऐसी सीधी-सादी बातों में हमें मार्गदर्शककी जरूरत नहीं होती। हमें स्वराज्य तभी मिलेगा जब हम अपने मार्गदर्शक स्वयं बन जायेंगे।

ये शर्तें हिन्दू और मुसलमान -- दोनोंके लिए हैं।

यदि हिन्दू अपने हिन्दुत्वको नहीं समझेंगे तो भारतको कभी स्वराज्य नहीं मिलेगा। अस्पृश्यता दूर न होनेपर भी खिलाफतके सवालका फैसला हो सकता है, यह मैं देख सकता हूँ; किन्तु अस्पृश्यता दूर न होगी तो स्वराज्य नहीं मिलेगा। यदि २२ करोड़ हिन्दू अपने समाजके पाँचवें हिस्सेको दबाते रहते हैं तो वह स्वराज्य नहीं होगा; बल्कि रावण-राज्य होगा। यह धर्म नहीं बल्कि अधर्म होगा। मैं यह लेख मद्रास प्रान्तके कुम्भकोणम्[१] नामक स्थानसे लिख रहा हूँ। कुम्भकोणम् अपने मन्दिरोंके लिए प्रसिद्ध है। यहाँ विद्वान् द्रविड़ लोग बसते हैं; किन्तु कुम्भकोणम्के ब्राह्मण भंगीकी छाया पड़नेसे भ्रष्ट हो जाते हैं। जिस भंगीकी छाया पड़ती है उसे मार भी खानी पड़ती है और गालियाँ तो उसपर बरसती ही हैं। अस्पृश्यताकी डायरशाही जैसी मद्रासमें चलती है वैसी कहीं अन्यत्र नहीं चलती। अस्पृश्य लोग ब्राह्मणोंकी गली में तो जा ही कैसे सकते हैं ? अस्पृश्योंको जानबूझकर अज्ञानमें रखा जाता है। कोई पशु बीमार पड़ता है तो उसकी सार-सँभाल भी कोई-न-कोई करता है; किन्तु अस्पृश्योंका रक्षक तो भगवान ही है। हमको स्वराज्य नहीं मिलता इसका कारण निर्दोष अस्पृश्योंकी हाय भी है। मद्रास अहाते में तो यह प्रश्न दिन-प्रतिदिन उग्र होता जा रहा है। मद्रासके अन्त्यज मजदूरों और दूसरे लोगोंके बीच बड़ा वैमनस्य है और वे एक- दूसरेसे मारपीट भी कर लेते हैं। हमें अस्पृश्योंसे प्रेम करना चाहिए। उनको हमें सगे भाईकी तरह मानना चाहिए और उनसे छू जानेपर अपने आपको भ्रष्ट न समझना चाहिए। इससे हमें स्वराज्य मिलेगा इतना ही नहीं, इसीसे हिन्दू धर्मका उद्धार भी होगा। गो-रक्षक हिन्दू अन्त्यजोंका त्याग नहीं कर सकते। अन्त्यज चाहे मैला हो, चाहे वह मुरदार मांस खाता हो, चाहे शराब पीता हो और चाहे उसमें पृथ्वीभरके सब दोष हों, फिर भी वह हमारा भाई है; ऐसा मानकर ही हमें उससे बरताव

  1. गांधीजी १८ सितम्बर, १९२१ के दिन कुम्भकोणमें थे।