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मार्शल लॉ

करना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तभी हम स्वराज्य मन्त्रका उच्चारण करने योग्य बनेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २५-९-१९२१

८८. मार्शल लॉ

मुझपर नोटिस

मैं जिस दिन मद्रास पहुँचा उसी दिन मुझे मद्रास सरकारकी ओरसे एक नोटिस मिला। नोटिस में कहा गया है :[१]

इस पत्रका जवाब मैंने अभीतक नहीं भेजा है। क्या भेजता ? मैं तो यह एक ही जवाब भेज सकता हूँ –- “आपका खत मिला। मैं वहाँ गये बिना नहीं रह सकता। आपसे जो हो सके सो कीजिए।"

लेकिन ऐसा जवाब मैं कैसे भेजूं ? मैंने खुद ही तो सविनय कानून-भंगकी तजवीजको मुल्तवी किया और दूसरोंसे भी कराया है। लोग सविनय कानून-भंग और सामान्य कानून-भंगके भेदको आज भी समझते नहीं हैं; ऐसी परिस्थितिमें मैं एकाएक कानूनका सविनय भंग भी कैसे कर सकता हूँ ? इस खयालसे मैंने अभी उसका जवाब दिया ही नहीं है। सच पूछिए तो मुझे तो यह स्वराज्य प्राप्त करनेका मौका घर बैठे मिल गया था लेकिन मैं उसे इस आशासे छोड़ रहा हूँ कि मीयादके जो दिन अभी बाकी हैं उसमें लोग सविनय कानून-भंगके मर्मको समझ जायेंगे और हम निडर होकर कानूनका सविनय भंग कर सकेंगे तथा इस तरह सार्वजनिक स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे।

यह लेख मैं त्रिचनापल्लीसे[२] लिख रहा हूँ। यहाँ मुझे एक और भी हुक्म मिला है। वह पुदुकोटा नामकी देशी रियासतकी तरफसे आया है। उसपर उस राज्यके किसी अंग्रेज हाकिमके हस्ताक्षर हैं। मुझे उस राज्यकी हदमें से गुजरते हुए चेटीनादको जाना था। महज उसकी हदमें से मेरे गुजरने भरसे कहीं वहाँकी प्रजापर मेरा असर न हो जाये, इस डरसे वहाँके हाकिम मुझे लिखते हैं : 'राजा साहबने सुना है कि आप उनकी हदमें से होकर जानेवाले हैं। अगर आप ऐसा करेंगे तो सरहदपर तैनात सिपाही आपको वापस लौटा देंगे।' इसका जवाब तो मैंने दे दिया है : 'आपका खत मिला। हाँ, मुझे आपकी हदमें होते हुए जाना तो था, पर आपका यह पत्र मिलनेसे अब मैं दूसरे रास्ते होकर चेटीनाद जाऊँगा।'

पर इन सबको मैं शुभ चिह्न समझता हूँ। अगर इन अवसरोंका उपयोग करना हमें आ जाये तो हम निश्चय ही इसी वर्ष में स्वराज्य प्राप्त कर लें। इसका उपाय

२१-१४
 
  1. देखिए "टिप्पणियाँ", २२-९-१९२१ का उप-शीर्षक "प्रमाण"।
  2. गांधीजी १९ सितम्बर, १९२१ को त्रिचनापल्लीमें थे।