पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी कितना आसान है। बस, हम अपने काममें लगे रहें और जेलका स्वागत करें। जेल जानेकी योग्यता अभी हम लोगोंमें नहीं है, चरखेके महत्वको हमने जाना नहीं है! हमारे कितने कार्यकर्ता अपना धर्म समझकर श्रद्धा के साथ चरखा कात रहे हैं ? कितनोंने अपने तमाम विदेशी कपड़ोंका त्याग कर दिया है ? और यह बात तो कोई अन्धा भी देख सकता है कि सरकार कपड़ेके बहिष्कारको गवारा कर ही नहीं सकती। वह ऐसी अनेक युक्तियाँ काममें ला रही है जिससे हम ऐसे बहिष्कारसे बाज आ जायें। लड़कोंका स्कूल-कालेज छोड़ना, वकीलोंका वकालत छोड़ना, शराबखोरोंका शराब पीना छोड़ना, यह सब सरकारको खलता तो है, पर फिर भी वह इनको गवारा करती है। लेकिन स्वदेशीको तो वह किसी तरह गवारा नहीं कर सकती। इस विदेशी कपड़े ही के लिए तो यह सरकार यहाँ तशरीफ लाई है और इसीके लिए वह हिन्दुस्तानपर हुकूमत भी करती है ! और उसका हमपर बड़ेसे बड़ा टैक्स बस यही विदेशी कपड़ा ही तो है। जहाँ यह टैक्स देना हमने बन्द किया कि तुरन्त यह सरकार 'हाकिम' के बजाय 'सेवक' बन जायेगी।

सितम्बरका अन्त पास आ रहा है। पता नहीं गुजरातमें बहिष्कार कहाँतक पहुँचा है! कितने चरखे चलने लगे हैं? मैं तो अक्तूबर के पहले गुजरातके दर्शन न कर सकूंगा। लेकिन मुझे उम्मीद है कि जब मैं गुजरातमें पहुँचूँगा तब प्रत्येक भाई और बनके शरीरपर और उनके घरोंमें खादी ही खादी देखूंगा और हर एक घरमें चरखा चलता हुआ नजर आयेगा।

हिन्दुस्तान के शरीरपर अभी खिलाफतका घाव तो ज्योंका-त्यों बना ही हुआ है; पंजाबका घाव अभी वह ही रहा है और अब यह मलाबारका एक ताजा घाव और हो गया। मुझे यकीन है कि अगर गुजरात चाहे तो इन घावोंको सुखा सकता है। यह कहूँ तो अत्युक्ति न होगी कि इसी बातको अपनी आँखों देखने के लिए मैंने, जेलमें जानेका यह शुभ अवसर हाथसे जाने दिया है। मैं जो इस समय खामोश रह गया हूँ, उसका एक कारण यह भी है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २५-९-१९२१