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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस्लाम यह आज्ञा नहीं देता कि किसीको जबरदस्ती मुसलमान बनाया जाये। यही नहीं बल्कि वह तो बलात्कारका निषेध भी करता है। और यह कहना तो फिजूल है कि इस्लाम में जबरदस्तीसे काम लिया गया है। किसी धर्मके सभी अनुयायी उसका पूरा-पूरा अनुसरण नहीं करते। क्या गो-रक्षाके लिए मुसलमानोंका वध करनेकी आज्ञा हिन्दूधर्म में हैं ? नहीं। फिर भी हिन्दू उन्मत्त होकर मुसलमानोंके साथ झगड़ते हैं। क्या इस बातको हम नहीं जानते ? अगर इस्लामधर्ममें जबरदस्ती करनेका विधान हो तब तो वह धर्म नहीं, बल्कि अधर्म माना जायेगा। मुझे तो यकीन है कि ऐसे बलात्कारकी आज्ञा इस्लाममें हरगिज नहीं है। अगर होती तो तमाम मुसलमान खुलमखुल्ला यह बात कबूल करते। जबरदस्ती के बलपर आजतक कोई मजहब दुनियाके परदेपर नहीं टिका। मुसलमानोंके शासन कालका जो इतिहास हम लोगोंको पढ़ाया जाता है उसमें, मेरा मत है कि, बहुत-सी बातें बढ़ाकर कही गई हैं। हाँ, खिलाफतकी फतहसे मुसलमानोंका जोर जरूर ही बढ़ेगा, उनका पराक्रम भी बढ़ेगा; परन्तु इससे यदि हम यह मानें कि मुसलमान लोग उसका उपयोग खुद हिन्दुओंके ही खिलाफ करेंगे तो इसका अर्थ तो यह है कि मुसलमानोंमें शराफत-जैसी कोई चीज ही नहीं है, वे उपकारका बदला अपकारसे देते हैं, अर्थात् उनके यहाँ धर्म ही नहीं है। मुझे तो अबतक जो कुछ अनुभव हुआ है वह बिल्कुल इसके उलटा है। अनेक मुसलमानोंकी सचाई और शराफतका अनुभव मुझे है।

परन्तु हिन्दू और मुसलमानोंकी एकताका यह अर्थ हरगिज नहीं है कि किसी मुसलमान या किसी हिन्दूसे कभी कोई गलती होगी ही नहीं। गलती हो जानेपर भी जब हम अटल बने रहें तभी यह माना जायेगा कि हमने एकता-धर्मका पालन किया है।

पर अभी इस सवालपर जरा और विचार करें। इस सरकारने हमारी चुटिया तो बेशक जबरदस्ती नहीं काटी है, परन्तु इसने हमारी आत्मा ही को कहाँ रहने दिया है? सरकारके बलात्कारके मुकाबलेमें तो मुझे मोपलाओंका बलात्कार ना-कुछ मालूम होता है। सरकारके हाकिमोंने तो एक क्षणभरमें लोगोंसे खादी छीन ली और हिन्दू और मुसलमान दोनोंको धर्महीन कर डाला। हिन्दू-मुसलमानोंका पौरुष किसने हरण किया है? आज तो सरकारके शस्त्र-बलके सामने मुँह उठानेकी भी शक्ति हममें नहीं रह गई। मुगलोंके जमानेमें हमारी ऐसी हीन स्थिति नहीं हुई थी। मोपलाओंके शस्त्रबलका सामना शस्त्रोंके ही द्वारा करनेकी तजवीज तो मैं इसी घड़ी कर सकता हूँ; परन्तु मैं अपनेको शस्त्र-शास्त्रका थोड़ा-बहुत ज्ञाता मानते हुए भी सरकारके शस्त्र-बलके सामने शस्त्र-प्रयोग करनेकी विद्याका आविष्कार न तो खुद ही कर सकता हूँ और न अली भाई ही अबतक कर सके हैं।

इसके सिवा, हिन्दू और मुसलमानोंकी एकताका टिकना दोनों द्वारा शान्ति-मार्गको स्वीकार करनेपर ही अवलम्बित है। और हर एक कौमके अगुआ लोगोंको यह कबूल करना होगा कि हमारे आपसके झगडोंका फैसला महज शान्तिके रास्ते अर्थात् पंचोंकी मारफत ही होना चाहिए।

अब अन्तमें, जो हिन्दू जबरदस्ती मुसलमान बनाये गये हैं वे मुसलमान नहीं माने जा सकते और न वे भ्रष्ट ही समझे जा सकते हैं। वे हिन्दू ही माने जाने