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टिप्पणियाँ

चाहिए; उन्हें इसका पूरा-पूरा अधिकार है। उन्हें किसी भी तरहके प्रायश्चित्तकी जरूरत नहीं।

मुझे इतना और भी कह देना उचित है कि जिन-जिन मुसलमानोंने मोपलाओंके अत्याचारों की बातें सुनी हैं उन्हें बड़ा ही अफसोस हुआ है और अगर आज हम लोग वहाँ जाने दिये जाते तो मोपला लोग खुद-ब-खुद आकर माफीकी याचना करते। मुझे पूरी उम्मीद है कि जब स्वराज्य मिल जायेगा तब वे लोग जरूर ही माफी माँगेंगे। वे तो सिर्फ एक बात जानते हैं -- लड़ना। वे हमारे नादान भाई हैं। उन्हें सुधारनेका प्रयत्न सरकारने तो किया ही नहीं, पर हम लोगोंने भी नहीं किया। क्या इसमें मलाबारके हिन्दुओंका कुछ दोष नहीं है ?

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २५-९-१९२१


९०. टिप्पणियाँ

मोपला उपद्रव

इसमें सन्देह नहीं कि मोपला उपद्रवसे हमें काफी हानि पहुँची है। मद्रास प्रान्तमें, हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकताके विषयमें लोगोंका विश्वास हिल गया है। अधिकांशको ऐसा लगने लगा है कि जनता अन्ततक शान्तिका पालन नहीं कर सकती। दूसरे डर गये हैं। इसका यह मतलब नहीं कि वे अब सभाओं आदिमें नहीं आते। किन्तु उनके मनमें यह भय अवश्य प्रवेश कर गया है कि अब क्या होगा? उपद्रवके दरम्यान सैकड़ों मोपले मारे गये और अभी मारे जा रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि इस समय मलाबारमें स्वदेशी आन्दोलन बन्द हो गया है। सरकार तो यही चाहती थी। मार्शल लॉकी घोषणा से सरकारको स्वदेशीका नाश करनेका बहुत अच्छा मौका मिल गया। कहा जाता है कि मार्शल लॉ शुरू होनेपर खादीधारियोंके खादी के कपड़े फाड़े और जलाये गये हैं। खादी की टोपियाँ और चरखे आदि भी जलाये गये हैं। फल यह हुआ कि कालीकटके बाजारमें जो खादीकी टोपियाँ और चरखे आदि दिखते थे वे एक दिनमें ही अदृश्य हो गये। यदि मोपलाओंने यह पागलपन न किया होता तो उसका इतना अनिष्ट परिणाम न होता। यदि उन्होंने रक्तपात न किया होता और फिर भी किसी सरकारी अधिकारीने खादीके कपड़े जलानेकी बदतमीजी की होती तो आज या तो वह अपने पदसे हटा दिया गया होता या खादीका प्रचार ऐसी घटनाओंसे और बढ़ गया होता। किन्तु मोपलाओंके पागलपनसे तो उलटा ही परिणाम निकला है। उन्हें तो स्वदेशीके महत्वका कोई ज्ञान ही नहीं था। दूसरे जो थे वे भीरु थे। वे खादी पहन सकते थे किन्तु उसके लिए मरनेकी शक्ति उनमें नहीं आई है। इसलिए डरके कारण उन्होंने खादी और चरखेका त्याग कर दिया। हमें इससे एक बड़ा सबक सीखना है। हम जो खादी पहनते हैं और खादीकी टोपी धारण करते हैं सो धर्मकी प्रेरणासे करते हैं। तब होना यह चाहिए कि कोई हमें धमकाकर या