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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

डराकर हमसे खादी न छुड़ा सके। इसके लिए यानी स्वदेशीके लिए हमें मृत्युका आलिंगन करनेकी तैयारी रखनी चाहिए और खादी-प्रचारके अपने कार्य में अधिक उत्साही बनना चाहिए।

धन्य है यह धर्मपत्नी

मौलाना मुहम्मद अलीकी बेगम साहिबाके धीरजको देखकर मैं तो दंग रह जाता हूँ। वाल्टेयरमें जब उनके पति, मौलाना साहब, गिरफ्तार हुए तब वे उनसे मिलने गई थीं। और जब मिलकर लौटीं तब मैंने उनसे पूछा कि आपको घबराहट तो नहीं होती। उन्होंने कहा “नहीं, मुझे जरा भी घबराहट नहीं। पकड़े जानेवाले तो थे ही। यह तो उनका धर्म था।" मैंने उनकी आवाज में भी घबराहट नहीं पाई। उसके बाद भी वे हमारे ही साथ घूम रही हैं और अपनी हिम्मतका परिचय दे रही हैं। स्त्रियोंकी सभाओंमें और पुरुषोंकी सभाओंमें भी वे बुर्का ओढ़कर आती हैं और थोड़े में परन्तु ऐसा भाषण करती हैं कि वह ठेठ दिलकी तहतक पैठ जाता है। वे सबको शान्त रहने, चरखा कातने और खादी पहननेकी सिफारिश करती हैं और मुसलमानोंसे स्मर्नाके लिए चन्दा भी माँगती हैं। कुछ ही महीने पहलेतक उनके बनाव-शृंगारकी इन्तहा नहीं थी। महीन कपड़ेके बिना काम नहीं चलता था। पर आज वे मोटी खादीका हरा रँगा हुआ झगा पहनती हैं। हिन्दू स्त्रियोंकी बनिस्बत मुसलमान स्त्रियोंको अधिक कपड़े पहनने पड़ते हैं। उसमें भी बेगम साहिबाका बदन कुछ हलका नहीं है। तो भी वे अपने धर्मके लिए और देशके लिए इस तरह तपस्या कर रही हैं। इसका फल यह हो रहा है कि उनका दर्शन करनेके लिए अब जगह-जगहपर मुसलमान बहनें भी आया करती हैं।

मद्रास प्रान्तकी मुसलमान बहनोंकी पोशाक मुझे बहुत ही सादा नजर आती है। जहाँ हिन्दू-बहनोंकी पोशाक में तो रंग-बिरंगेपनका पार ही नहीं है, वहाँ मुसलमान-बहनोंकी पोशाक में मुझे मोटा सफेद कपड़ा ही नजर आता है। यह दृश्य मुझे बहुत पवित्र मालूम होता है। हिन्दू-बहनों की रंग-बिरंगी साड़ियाँ इस समय तो मुझे बड़ी अटपटी मालूम होती हैं।

स्वदेशीका अभाव

मद्रास में स्वदेशीका प्रचार बंगालसे भी कम हुआ दीखता है और स्त्रियोंमें तो, हम ऐसा भी कह सकते हैं कि वह है ही नहीं। लेकिन मुझे आश्वासन दिया गया है कि अब वह वेगसे बढ़ेगा। गरीबोंमें कातनेका शौक अपने-आप बढ़ रहा है। मद्रासके व्यापारियोंने मुझसे कहा है कि उनकी दुकानोंमें विलायती कपड़ेकी माँग बहुत कम है और स्वदेशीकी खपत खूब बढ़ी है। हो सकता है, यह बात सच हो। और यदि यह सच हो तो इससे यह सिद्ध होता है कि प्रचारका यह कार्य कांग्रेसके कार्यकर्त्ताओंकी मार्फत कम हुआ है; जागृति अपने-आप ही हुई है।

मद्रासके नेता

स्वदेशीके प्रचारके इस अभावका दोष नेताओंको अवश्य ही दिया जा सकता है। लेकिन मद्रासमें सेवक कम नहीं हैं। श्री राजगोपालाचारीकी योग्यताकी सीमा नहीं