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पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

है। इसी तरह डा० राजनकी भक्तिको सीमा नहीं है। किन्तु इन सेवकोंको एक नया वातावरण पैदा करना था और इसमें उन्हें बड़ी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा। फिर भी वे टिके रहे हैं और अपना काम करते रहे हैं। यह बात जितनी सन्तोषजनक है, उतनी ही आश्चर्यजनक भी है। मद्रासके लोगोंकी धार्मिकताके प्रति मुझे आदर है। वहाँकी जनता दूसरे प्रान्तोंकी जनताकी ही तरह भोली है; उसके अध्यवसायका तो पार ही नहीं है। इसलिए यद्यपि मद्रास आज पीछे है लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह अगली पंक्तिमें पहुँचेगा ही नहीं। मद्रासमें बुनकर बहुत हैं और उनका कौशल उत्तम कोटिका है। मैं उनके प्रमुख व्यक्तियोंसे कुम्भकोणम् में मिला था। उन्होंने मुझे वचन दिया है कि वे हाथसे काते हुए सूतका ही उपयोग करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २५-९-१९२१

९१. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

गाड़ी में
२५ सितम्बर, [१९२१]

प्रिय चार्ली,

तुम्हारा पत्र मिला। बेशक विदेशी कपड़ोंकी होली जलाना आन्दोलन के लिए बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। इन कपड़ोंकी होली जलाना नापसन्द करते हुए भी जो चाहे, इस आन्दोलनमें शरीक हो सकता है। महादेवकी बातसे मुझे ऐसा लगा कि शायद तुम सारे आन्दोलनकी सचाईपर ही सन्देह करने लगे हो। इसीलिए मैंने तुमको लिखा कि यदि सन्देह करते हो तो भी तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम ज्योंका-त्यों बना रहेगा, उसपर कोई आँच आनेकी नहीं।[१] परन्तु यह देखकर कि तुम आन्दोलनमें अब भी उतना ही विश्वास रखते हो जितना पहले, स्वभावतः मुझे सान्त्वना मिलती है। जिन मित्रोंका सहयोग मैं बनाये रख सकता हूँ; उन सभीका बनाये रखना चाहता हूँ। साथ ही मैं आन्दोलनकी सच्चाईमें इतना ज्यादा विश्वास करता हूँ कि मौका आनेपर अकेले खड़ा रहकर भी उसको बनाये रखने में मैं सन्तोष मानूंगा। हिंसा और उससे सम्बन्धित सभी गौण बुराइयोंकी पूजासे बचनेका अन्य कोई उपाय नहीं है।

आशा है, इस समुद्र-यात्रासे तुम्हें लाभ होगा।

श्रीमती पेटिट और श्री पेटिटको[२] मेरी याद जरूर दिलाना। सस्नेह

तुम्हारा,
मोहन

  1. देखिए “ पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको ”, १४-९-१९२१।
  2. सर दिनशा पेटिट ( १८७३-१९३३); बम्बई विधान परिषद् के सदस्य।