मैंने आज तुम्हें एक तार[१] भेजा है।
अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ९५५) की फोटो-नकलसे।
९२. पत्र : महादेव देसाईको
कोयम्बटूर जाते हुए
रविवार [ २५ सितम्बर, १९२१]
मुझे तुम्हारा वह पत्र जो तुमने उर्मिला देवीको लिखे हुए पत्रके साथ भेजा है मिला। इससे पहलेका पत्र नहीं मिला।
यह सत्य है कि बंगालसे मुझे निराशा हुई, मद्राससे उससे भी अधिक। मैं इस बातको अच्छी तरह जनता हूँ कि हमारा असली कार्य कांग्रेसके कार्यकर्त्ताओंके दिलों में चरखेके प्रति विश्वास जमाना ही है। यह विश्वास मुझे बंगालमें नजर नहीं आया। यहाँ भी वह दिखाई नहीं देता इसीसे मैं घबरा गया हूँ। सामान्य जनताको उसमें विश्वास है, लेकिन उन्हें मददकी जरूरत है, कौशलकी जरूरत है। अगर सब कोई कुछ-न-कुछ करनेके लिए कहें और करनेवाला कोई भी न हो, तो क्या स्थिति होगी ? वही हाल हमारा है। सरूप और रणजीतको तो क्या कह सकते हैं ? लेकिन जवाहरलाल समझेगा, ऐसा मैं मानता हूँ। मैं आश्रम में बैठकर सिर्फ यही काम करने लगूं, यह बात होनेमें देर नहीं लगेगी।
हिन्दुस्तानकी अधोगतिसे मुझे इतना परिताप होता है कि अगर हिन्दुस्तान इस वर्षके अन्ततक सचेत नहीं हो जाता तो यह परिताप कदाचित् मुझे जिन्दा ही जला डालेगा -- मेरे इतना सब कहने और लिखनेका आशय यही है। मैंने अपनी श्रद्धाको तो छोड़ा नहीं है। मैं तो जब बुद्धिका प्रयोग करके हिसाब करने बैठता हूँ तब मैं व्याकुल हो जाता हूँ। इतनेमें ही मेरे अन्तरसे आवाज आती है कि "करनेवाला तो ईश्वर है।" 'कछुआ और कछुवीका संवाद'[२] और 'मामेरू'[३] आदि को याद करता हूँ और शान्त हो जाता हूँ। मैं दो तारीखको बम्बई पहुँचूँगा। तुम चार तारीखको आना।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस० एन० ११४१९) की फोटो नकलसे।