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९४. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

ट्रेनमें
२५ सितम्बर, १९२१

भाईश्री ५,

मैं आपका पोस्टकार्ड अबी पड़ रहा हूं. आपको रुपये न भेज सका, अब तो मुंबईमें दे दूंगा. मैं मुंबईमें २ अक्टोबरको पहुंचुंगा. चार तारीखतक रहूंगा, इतने में आप आ जायें ऐसा चाहता हूं.

मोहनदास गांधी

बनारसीदास चतुर्वेदी एसक्यू[१]

शान्तिनिकेतन
बोलपुर

ई० आई० रेलवे

जी० एन० २५७८ की फोटो नकलसे।


९५. भाषण : अभिनन्दनके उत्तरमें[२]

२७ सितम्बर, १९२१

मैं आपको आपके इस सुन्दर अभिनन्दन पत्र और जिस सुन्दर मंजूषामें वह रखा गया है, उसके लिए हृदयसे धन्यवाद देता हूँ। जैसा कि आप जानते हैं, मेरे पास चाँदी के पात्र या मंजूषा रखने के लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए इस चाँदीका उपयोग सार्वजनिक कार्यों में किया जायेगा। अपने अभिनन्दन-पत्र में आपने प्रगतिका जो लेखा प्रस्तुत किया है, उसके लिए मैं सेलम नगरपालिकाको बधाई देता हूँ -- इसलिए और भी कि आपके स्कूलोंमें पंचम बच्चोंको बेरोक-टोक दाखिल किया जाता है, और आपकी कौंसिलमें पंचम जातिका एक सदस्य भी है। जिस स्थानने कांग्रेसको उसका अध्यक्ष[३] और एक मुख्य सचिव दिया हो, उस स्थानसे इससे कमकी आशा भी नहीं की जा सकती। आपने कहा है कि असहयोग के लिए आप नगरपालिका सम्बन्धी नियमकी सीमाके अन्दर रहते हुए सभी कार्य करनेको तैयार हैं। आपने यहाँ उन तीन खास बातोंका उल्लेख

  1. जुलाई १९२० में चीफ्स कालेज, इन्दौरसे त्यागपत्र देकर शान्तिनिकेतनमें सी० एफ० एन्ड्यूजके साथी हो गये; बादमें उनकी आत्मकथाके सह-लेखक।
  2. यह अभिनन्दन सेलम नगरपालिका द्वारा किया गया था।
  3. सी० विजयराघवाचार्य।