९६. भाषण : सेलमको सार्वजनिक सभामें[१]
२७ सितम्बर, १९२१
महात्माजीने कहा कि मुकदमा जितना अधिक अनुचित होगा, अलीबन्धु जितने ज्यादा बेगुनाह होंगे, कष्ट सहकर अपना लक्ष्य प्राप्त करनेके हमारे प्रयत्न उतने ही अधिक सफल होंगे। उन्होंने कहा उनपर चलाये गये मुकदमेका जवाब तत्काल पूरी तरह विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करके तथा घर-घर चरखा चलाना शुरू करके देना है। इसके बाद उन्होंने अस्पृश्यता निवारणपर बहुत ज्यादा जोर दिया। उन्होंने कहा कि वर्णाश्रम धर्मको जैसा मैं समझता हूँ उसके अनुसार उसमें किसी मानव स्पर्शसे दूषित हो जानेकी मान्यताके लिए कोई आधार नहीं है। वर्णाश्रम-धर्म सेवाकी एक योजना है, न कि विशेष अधिकारोंकी। बुरे विचार, बुरे शब्द और बुरे कामसे ही कोई स्त्री या पुरुष दूषित होता है, किसी मनुष्यके स्पर्शसे नहीं।
हिन्दू, ३०-९-१९२१
९७. भाषण : अभिनन्दन के उत्तर में[२]
२८ सितम्बर, १९२१
महात्माजीने. . . उनसे कहा कि आप लोगोंको अपनी नगरपालिका में स्वदेशीके सन्देशका प्रचार करना चाहिए, अपने सभी स्कूलों में चरखा चलवाना प्रारम्भ कर देना चाहिए, नशाबन्दीका काम आगे बढ़ाना चाहिए, अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्त होनेका यत्न करना चाहिए, और अकालका सामना करनेका उपाय करना चाहिए। आप ये सब रुचिकर काम नगरपालिकाके नियमोंका उल्लंघन किये बिना कर सकते हैं।
हिन्दू, ५-१०-१९२१