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स्वाभाविक क्रमसे अंग्रेजोंका। जो राष्ट्र किसी युगों पुराने अभिशापसे एक महीने में छुटकारा पा सकता है, जो राष्ट्र मद्यपानको उतनी ही आसानीसे छोड़ सकता है जितनी आसानीसे हम अपने कपड़े उतार देते हैं, जो राष्ट्र अपने पुराने उद्योगको दुबारा फिर अपना सकता है और एकाएक अपने अवकाशके समयका उपयोग इस तरह करना शुरू कर सकता जिससे सिर्फ एक ही सालमें वह साठ करोड़ रुपयेका कपड़ा तैयार कर ले, उस राष्ट्र के बारेमें यही माना जायेगा कि उसका कायाकल्प हो गया है। इसके कायाकल्पका असर दुनियापर भी होगा ही। इससे तो किसी नास्तिकको भी ईश्वरकी सत्ता और कृपाकी प्रतीति हो जानी चाहिए, और इसीलिए मैं कहता हूँ कि अगर इस तरहसे भारतका कायाकल्प हो सके तो दुनियाकी कोई भी ताकत इसे स्वराज्य स्थापित करने के अधिकारसे वंचित नहीं रख सकती। भारतके आकाशमें जो विपत्तिके बादल घुमड़-घुमड़कर जमा हो रहे हैं, उन सबके बावजूद मैं यह भविष्यवाणी करता हूँ कि जिस क्षण भारत “अस्पृश्यों" के प्रति अपने व्यवहारके लिए पश्चात्ताप करने लगेगा, जिस क्षण वह विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार कर देगा उसी क्षण वे ही अंग्रेज अधिकारी, जिनका हृदय आज इतना कठोर हो गया लगता है, एक स्वतन्त्र और बहादुर राष्ट्रके रूपमें इसका स्वागत करेंगे। और चूँकि मैं मानता हूँ कि अगर हिन्दू लोग चाहें तो वे तथाकथित पंचमोंको इस अधोगतिसे मुक्त करके उन्हें वे सारे अधिकार दे सकते हैं, जिनका वे अपने लिए दावा करते हैं, और चूंकि भारत चाहे तो अपनी जरूरतका सारा कपड़ा उसी तरह स्वयं तैयार कर सकता है जिस तरह यहाँके लोग अपनी जरूरतका सारा खाना स्वयं ही तैयार कर लेते हैं, इसीलिए मैं यह भी मानता हूँ कि इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त किया जा सकता है। विस्तृत पैमानेपर तैयार की गई किसी योजनाको यान्त्रिक तौरपर लागू करनेसे यह कायाकल्प सम्भव नहीं होगा। लेकिन अगर हमपर ईश्वरकी कृपा हो तो यह सम्भव हो सकता है। और इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि ईश्वर हममें से प्रत्येक व्यक्तिके हृदयमें एक अद्भुत परिवर्तन कर रहा है ? जो भी हो, हर जगह कांग्रेसके हर कार्यकर्त्ताका कर्तव्य है कि वह अस्पृश्य भाइयोंसे मैत्री सम्बन्ध स्थापित करे और सभी अ-हिन्दू हिन्दुओंको समझायें कि 'वेदों' और 'उपनिषदों'के हिन्दुत्वमें, 'भगवद्गीता' तथा शंकर और रामानुजके हिन्दुत्वमें ऐसी कोई चीज नहीं है जिसके आधारपर किसी भी मानव-प्राणको, चाहे वह कितना भी गिरा हुआ हो, अस्पृश्य माना जाये। हर कांग्रेसी यथासम्भव अधिकसे-अधिक विनम्रतासे रूढ़िवादियोंको यह समझाये कि यह कलंक अहिंसा-धर्मके बिलकुल विपरीत है।

मोची बनाम वकील

बाबू मोतीलाल घोष इतने कमजोर हो गये हैं कि चलना-फिरना भी उनके लिए कठिन है। फिर भी, उनके मस्तिष्कमें नौजवानोंके मस्तिष्क-जैसी ताजगी है। एक दिन उन्होंने मुझे और मौलाना मुहम्मद अलीको बुलवाया। उनका मुख्य उद्देश्य हमें इस बातपर राजी करना था कि हम वकीलोंको कांग्रेस में शामिल होनेको आमन्त्रित करें और इस प्रकार व्यवहारतः उन्हें एक बार फिर जनमतके निर्विवाद नेतृत्व-