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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

की अपनी पुरानी स्थिति में प्रतिष्ठित कर दें। हम दोनोंने उनसे कहा कि हम चाहते हैं कि वकील लोग कांग्रेसके लिए काम करें, लेकिन जो लोग वकालत नहीं छोड़ना चाहते वे न तो नेता बन सकते हैं और न उन्हें बनना चाहिए। मोतीबाबूने कहा कि आपने वकीलों और मोचियोंकी चर्चा एक साथ कर दी, उससे कुछ वकीलोंके मनको चोट पहुँची है। यह सुनकर मुझे दुःख हुआ। 'यंग इंडिया' में लिखी वह टिप्पणी[१] मुझे याद है, और निश्चय ही उसे लिखनेमें किसीको चोट पहुँचानेका इरादा नहीं था। वकीलोंके बारेमें मैंने बहुत-सी कड़ी बातें कही हैं, लेकिन ऐसा तो कभी नहीं माना कि वे जात-पातके संकुचित विचारसे ग्रस्त हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि वकीलोंने मेरी बातोंके पीछे जो भावना है उसे समझा है। वैसे तो मैं यही समझता हूँ कि अपने लेखोंमें मैं कहीं किसीको चुभनेवाली बात नहीं कहता। लेकिन, इस मामले के बारेमें मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि जिस अनुच्छेदकी ओर मोतीबाबूका इशारा था, उसमें किसीको चोट पहुँचानेका मेरा कोई मंशा नहीं था। मैं तो खुद ही एक वकील रहा हूँ, और मैं अपने-आपको इतना कैसे भूल जा सकता था कि इस तरह मनमाने ढंगसे उसी पेशे के लोगोंको चोट पहुँचाता ? और फीरोजशाह मेहता[२], रानडे,[३] तैयबजी,[४] तेलंग[५], मनमोहन घोष, कृष्णस्वामी अय्यर जैसे वकीलोंने देशकी जो शानदार और अपूर्व सेवा की, उसे भी मैं कैसे भूल सकता हूँ ? इन दिवंगत सज्जनोंके अलावा, हमारे बीच वर्तमान वकील लोग आज जो सेवा कर रहे हैं, उनकी बात तो रहने दीजिए। जब किसीमें कुछ बोलनेकी हिम्मत नहीं थी, तब वे जनताकी भावनाको स्वर दे रहे थे और देशकी स्वतन्त्रताके संरक्षकका काम कर रहे थे। और आज अगर उनमें से अधिकांशको जनता अपने नेताके रूपमें स्वीकार नहीं कर रही है तो उसका कारण यह है कि आजतक उन्होंने नेतृत्वके जो गुण दिखाये, अब उनसे भिन्न गुणोंकी अपेक्षा की जाती है। आज हमारे नेताओंसे जिन गुणोंकी अपेक्षा की जाती है, वे हैं साहस, सहनशक्ति, निर्भीकता और सबसे बढ़कर, आत्म-त्याग। अगर दलित वर्गका ही कोई व्यक्ति इन गुणोंका पूरा परिचय देता है तो निश्चय ही वह राष्ट्रका नेतृत्व कर सकेगा। लेकिन ओजस्वीसे-ओजस्वी वक्तामें भी अगर ये गुण न हों तो वह नेतृत्व नहीं कर सकता।

इस बातसे मुझे बड़ा सन्तोष हुआ है कि जो वकील वकालत नहीं छोड़ पाये हैं, उन्होंने मेरी उक्त मान्यताको स्वीकार करके विनम्र सहायकोंकी तरह काम

  1. देखिए “टिप्पणियाँ", २५-८-१९२१ का उप-शीर्षक “वकालत में लगे हुए वकील"
  2. १८४५-१९१५; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके संस्थापकोंमें से एक; १८९० में कांग्रेसके अध्यक्ष।
  3. महादेव गोविन्द रानडे (१८४२ - १९०१ ); अर्थशास्त्री, इतिहासकार और समाज-सुधारक, १८९३ में बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश; कांग्रेसके संस्थापकों में से एक।
  4. गुजरातके एक राष्ट्रवादी मुसलमान, एक समयमें बड़ौदा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश; पंजाबके उपद्रवोंकी जाँच के लिए कांग्रेसकी पंजाब उप-समिति द्वारा नियुक्त समितिके एक सदस्य।
  5. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके संस्थापकोंमें से एक।