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करनेमें ही खुशी मानी है। अगर किसी सेनापतिके साथ उसके छावनी-सेवक -- अनुगामी -- न हों तो उसका पूरा काम ही चौपट हो जायेगा।


इसपर मोतीबाबूने कहा, "लेकिन, हमारे आन्दोलनमें बहुत असहिष्णुता आ गई है। जिन वकीलोंने वकालत नहीं छोड़ी है उन्हें असहयोगी लोग अपमानित करते हैं।" मुझे लगता है कि आरोप एक हदतक सही है। असहिष्णुता स्वयं ही एक प्रकारकी हिंसा है और सच्ची लोकतान्त्रिक भावनाके विकास के मार्गमें बाधा है। थोड़ा-सा त्याग करके या खादी पहनना शुरू करके कोई असहयोगी अहंकारपूर्वक अपने-आपको दूसरोंसे श्रेष्ठ मानने लगे, तो यह इस आन्दोलनके लिए सबसे खतरनाक चीज है। असहयोगी अगर विनम्र नहीं है तो वह कुछ नहीं है। जब किसी व्यक्तिमें आत्मसन्तोषकी भावना आ जाये तो इसका मतलब है, उसमें विकासकी क्षमता नहीं बच पाई है और वह स्वतन्त्रताके लायक नहीं रह गया है। जो धार्मिक भावसे विनम्रतापूर्वक थोड़ा त्याग करता है, उसे तत्काल अपने त्यागकी विपन्नता और न्यूनताका एहसास हो जाता है। एक बार जब हम त्यागके मार्गपर कदम बढ़ा देते हैं, तो हमें इस बातका पता चल जाता है कि हममें कितना स्वार्थ है; और फिर हममें बराबर अधिकाधिक देनेकी इच्छा होनी चाहिए और तबतक सन्तोष नहीं मानना चाहिए जबतक कि हमने अपना सर्वस्व न दे दिया हो।

इस बातका एहसास करते हुए कि हमने इतना कम त्याग करनेकी कोशिश की और जितना त्याग कर पाये वह उससे भी कम है, हमें विनम्र और सहिष्णु बने रहना चाहिए। दूसरोंसे अपनेको अलग रखकर और आसानीसे आत्म-तुष्ट हो जानेकी हमारी प्रवृत्तिके कारण ही बहुतसे ढुलमुल मनके लोग हमसे दूर रहे हैं। हम लोगोंको नम्रतापूर्वक समझायें-बुझायें, उनके मस्तिष्क और हृदयके धरातलोंपर उनसे निरन्तर अनुरोध करते रहें, और इसी तरह उनसे अपना मत स्वीकार करा लें, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। इसलिए जिन लोगोंके विचार हमारे विचारोंसे भिन्न हैं, उनके साथ हमें बराबर शिष्टता और धैर्यसे पेश आना चाहिए, हमें अपने विरोधियोंको देश के दुश्मन मानने का खयाल अपने मनसे संकल्पपूर्वक अलग रखना चाहिए।

वकील तथा दूसरे ऐसे लोग जो असहयोगमें विश्वास रखते हों, लेकिन किसी कारणसे उन मामलोंमें असहयोग नहीं कर पा रहे हों, जो उनपर लागू होते हैं, वे स्वदेशीके मामलेमें सहायक सेनानियोंके रूपमें चुपचाप काम कर सकते हैं। इसके लिए अधिकसे-अधिक संख्यामें लगनेवाले कार्यकर्त्ताओंकी जरूरत है। कोई कारण नहीं कि वकालत करता हुआ कोई वकील अदालतोंमें भी खादी पहनकर उसका प्रचलन क्यों नहीं बढ़ाये। कोई कारण नहीं कि वह स्वयं और उसके परिवारके लोग अवकाशके समय कताईका काम न करें। वकालत करनेवाले वकील स्वराज्य प्राप्तिकी दिशामें और भी बहुतसे काम कर सकते हैं, जिनमें से यहाँ सिर्फ एकका ही उल्लेख किया गया है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कोई भी वकालत करनेवाला वकील, और वकील ही क्यों, कोई सहयोगी विद्यार्थी भी, इस आन्दोलनमें वह जिस तरह भी सहायता दे सकता है, उस तरह सहायता देनेसे बाज नहीं आयेगा। सभी नेता नहीं हो सकते, लेकिन सेवक और अनुगामी सभी हो सकते हैं। और मुझे आशा है कि असहयोगी

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