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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अगर-मगरके साथ मद्य-निषेधके पक्षमें मत दिया था और केवल पाँच मद्य-निषेधके खिलाफ गये। पाठकोंको यह जानकर दुःख होगा कि मद्य-निषेधके खिलाफ मत देनेवाले पाँच लोगोंमें से दो स्नातक थे। लेकिन यह जो एक तथ्य सामने आया है, उसे कोई दूसरे दृष्टिकोण से देखते हुए कह सकता है कि ये दोनों स्नातक अपने विश्वासके प्रति इतने ईमानदार थे कि उन्होंने साहसपूर्वक लोकापवादका खतरा उठाकर भी अपनी अन्तरात्मा के निर्देशके अनुसार मत दिया। ऐसे जनमत संग्रहके शैक्षणिक महत्वमें कोई सन्देह नहीं हो सकता। बड़ा अच्छा होता, अगर कांग्रेस कमेटीके मन्त्रीने, जिसके कहनेपर मत संग्रह किया गया, मतदाता सूचीमें मत देने योग्य सभी लोगोंके नाम दर्ज कराये होते। आशा तो यही है कि दूसरी नगरपालिकाएँ भी नागपुरके दृष्टान्तका अनुकरण करेंगी।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-९-१९२१

९९. राजभक्तिसे भ्रष्ट करनेका आरोप[१]

कुछ समय पूर्व बम्बईके गवर्नर महोदयने लोगोंको चेतावनी दी थी कि कोई इसे मजाक न समझे, मैं जो कह रहा हूँ, करके छोडूंगा। उन्होंने कहा था कि जैसे भाषण दिये जा रहे हैं, वैसे भाषणोंको अब मैं बरदाश्त करनेवाला नहीं हूँ। अली-बन्धुओं और दूसरोंके सम्बन्धमें लिखी अपनी टिप्पणीमें उन्होंने अपना आशय स्पष्ट कर दिया है। अली-बन्धुओंपर यह आरोप लगाया जानेवाला है कि उन्होंने सिपाहियोंको राजभक्तिसे भ्रष्ट करनेका प्रयत्न किया और राजद्रोहात्मक बातें कहीं। मुझे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि बम्बईके गवर्नर ऐसे दयनीय अज्ञानका परिचय देंगे। स्पष्ट है कि गत बारह महीनोंमें भारतमें क्या-कुछ हुआ है, उसकी ओर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जाहिर है, कि वे नहीं जानते कि पिछले साल, सितम्बर महीने से ही कांग्रेसने सिपाहियोंको राजभक्तिसे विमुख करनेका काम शुरू कर दिया था, केन्द्रीय खिलाफत समितिने उससे पहले यह काम शुरू कर दिया था और उससे भी पहले स्वयं मैं ऐसा करने लगा था। कारण, जिस व्यक्तिने यह बात सुझाई कि भारतको हर सिपाहीसे, बल्कि सरकारकी सेवामें किसी भी हैसियतसे लगे हर व्यक्तिसे खुलेआम ऐसा कहनेका अधिकार है कि वह सरकारके अन्यायोंमें भागीदार है, वह व्यक्ति मैं ही हूँ। उसके लिए प्रशंसा या निन्दा जो मिले, मुझको ही मिलनी चाहिए। कराची कान्फ्रेंसने तो इस्लामके सन्दर्भमें कांग्रेसकी घोषणाको सिर्फ दुहरायाभर है। इस्लामकी ओरसे तो जो कुछ कहना होगा, मुल्ला लोग ही कह सकते हैं, लेकिन हिन्दुत्व और राष्ट्रीयताकी ओरसे मैं निस्संकोच कहूँगा कि चाहे सैनिकके रूपमें हो या गैर-सैनिक अधिकारीके रूपमें, किसी भी हैसियतसे किसी भी व्यक्तिके लिए उस

  1. यह उन लेखों में से एक था जिनके लिए गांधीजीको छः सालकी सजा दी गई।