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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायें, मानवताके लिए उतना ही अच्छा होगा। लेकिन मैं गवर्नर महोदयको यह याद दिला देना चाहता हूँ कि आज ब्रिटिश शासनको भारतीय लोग पौरुषहीन लगते हैं, जो अपने आपको डाकू-लुटेरोंसे नहीं बचा सकते, चाहें वे लुटेरे मोपला मुसलमान हों या आराके हिन्दू, तो यह कहकर उन्होंने ब्रिटिश शासनकी सबसे बड़ी निन्दा की है।

गवर्नर महोदयने अली बन्धुओंको राजद्रोही कहा है। यह बात राजभक्तिमें खलल डालने की बातसे जरा कम आपत्तिजनक है। कारण, उन्हें मालूम होना चाहिए कि राजद्रोह कांग्रेसका धर्म हो गया है। हर असहयोगी कानून द्वारा स्थापित इस सरकारके विरुद्ध अराजभक्तिका प्रचार करनेके लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। असहयोग यद्यपि एक धार्मिक और विशुद्ध रूपसे नैतिक आन्दोलन है, फिर भी इसका सोचा-समझा हुआ उद्देश्य सरकारको उखाड़ फेंकना है, और इसलिए भारतीय दण्ड संहिताके अनुसार यह कानूनी तौरपर एक राजद्रोहात्मक आन्दोलन है। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। लॉर्ड चेम्सफोर्ड इसे जानते थे। लॉर्ड रीडिंग भी जानते थे। अतः यह समझमें आने लायक बात नहीं है कि बम्बईके गवर्नर महोदय इसे नहीं जानते हों। लेकिन सभीने यह स्वीकार किया था कि जबतक यह आन्दोलन अहिंसात्मक रास्तेसे चलता है, इसमें कोई दखल नहीं दिया जायेगा।

लेकिन अब यह कहा जा सकता है कि सरकारको जब लगे कि एक प्रणालीके रूपमें उसके अस्तित्वपर ही इस आन्दोलनसे खतरा आ पड़ा है, तब उसे अपनी नीति बदलनेका अधिकार है, उसके अधिकारसे मैं इनकार नहीं करता। मुझे आपत्ति गवर्नर महोदयकी टिप्पणीपर है, क्योंकि उसकी शब्दावली ऐसी है जिससे नासमझ जनता यह समझ सकती है कि सिपाहियोंकी राजभक्तिमें खलल डालकर और राजद्रोह करके अली-बन्धुओंने ऐसे नये अपराध किये हैं जो गवर्नर महोदयके ध्यानमें पहले-पहल लाये गये हैं।

जो भी हो, कांग्रेस और खिलाफतके कार्यकर्त्ताओंका कर्त्तव्य स्पष्ट है। हम सरकारसे कोई रियायत नहीं माँगते, न हमें इसकी आशा है। हमने यह वचन भी तो नहीं माँगा था कि जबतक हम अहिंसापर डटे रहेंगे, हमें जेल नहीं भेजा जायेगा। सो अब अगर हमें राजद्रोहके कारण जेल भेजा जाये तो हमें शिकायत भी नहीं करनी चाहिए। इसलिए हमारे आत्मसम्मान और हमारी प्रतिज्ञाका तकाजा है कि हम शान्त, निरुद्विग्न और अहिंसक बने रहें। हमें जिस रास्तेपर चलना है, वह निर्धारित कर दिया गया है। हम सैकड़ों हजारों मंचोंपर खड़े होकर सिपाहियोंके बारेमें अली-बन्धुओंकी बातें दुहरायेंगे, और जबतक सरकार हमें गिरफ्तार नहीं कर लेती, हम खुलेआम और संगठित ढंगसे अराजभक्तिका प्रचार करते रहेंगे। और हम यह कार्य क्रुद्ध होकर प्रतिशोधकी भावनासे नहीं, बल्कि अपना धर्म मानकर करते हैं। जैसे अलीबन्धु खादी पहनते हैं वैसे ही हमें भी खादी पहननी चाहिए और स्वदेशीका सन्देश लोगोंके बीच फैलाना चाहिए, मुसलमानोंको स्मर्ना-सहायता कोष और अंकारा-कोषके लिए चन्दा जमा करना चाहिए। हमें अली-बन्धुओंकी ही तरह स्वराज्य प्राप्त करने तथा खिलाफत और पंजाबके साथ किये गये अन्यायोंके परिशोधनके लिए स्वदेशी तथा अहिंसाका प्रचार करना चाहिए।