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मेरी लँगोटी

फिर, मद्रासमें मैंने स्वदेशीका जो अभाव देखा उससे भी मुझे अकुलाहट हुई। लोगोंमें प्रेम बहुत देखा, लेकिन वह प्रेम मुझे छूंछा लगा।

मैं फिर परेशान हो उठा, फिर साथियोंसे चर्चा की। उनके पास कोई नई दलील तो थी नहीं। इस बीच सितम्बरका अन्त निकट दिखने लगा। इस महीनेके अन्ततक बहिष्कारका कार्यक्रम तो पूरा होना ही चाहिए -- यह कैसे हो? या मैं इसके लिए क्या करूँ?

ऐसा सोचते हुए हम २२ तारीखको मदुरा पहुँचे। मैंने निश्चय कर लिया और इस कठिनाईका यह हल निकाला कि कमसे-कम अक्तूबरके अन्ततक तो कि मैं सिर्फ लंगोटी पहनकर ही रहूँगा। दूसरे दिन प्रातःकाल मदुरामें बुनकरोंकी सभा थी। उसमें मैं मात्र एक लंगोटी ही पहन कर उपस्थित हुआ। आज यह तीसरी रात है।

मौलाना साहबको तो यह बात इतनी पसन्द आई है कि उन्होंने भी अपनी पोशाकमें, शरीअतके मुताबिक जितना सम्भव था, उतना परिवर्तन कर लिया है। पाजामेकी जगह एक छोटी लुंगी धारण की है और कुहनीतक के आस्तीनका कुरता पहना है। नमाज पढ़ते समय सिरपर कुछ होना जरूरी है, इसलिए वे सिर्फ उसी समय टोपी पहनते हैं।

दूसरे सभी साथी शान्त हैं। मद्रासके आम लोग इस परिवर्तनको आश्चर्यसे देख रहे हैं।

लेकिन अगर सारा भारत मुझे पागल कहे तो उससे क्या ? अथवा हमारे साथी मेरा अनुकरण न करें तो भी इस बातसे क्या फर्क पड़ता है ? यह काम मैंने साथियोंके अनुकरण करने के लिए तो किया नहीं है। इसका उद्देश्य सिर्फ जनसाधारणको धीरजका रास्ता दिखाना है, और अपना रास्ता साफ करना है।अगर मैं खुद लँगोटी पहनकर न रहूँ तो दूसरोंसे ऐसा करनेको कैसे कह सकता हूँ ? भारतमें लाखों लोग नंगे घूमते हैं। फिर यहाँ मुझे क्या करना चाहिए ? जो भी हो, सवा महीने लँगोटी मात्र पहनकर रहनेका अनुभव क्यों न प्राप्त करूँ? मैंने अपने वश-भर कुछ उठा नहीं रखा, इतना सन्तोष तो प्राप्त करूँ ?

ऐसा सोचकर मैंने यह कदम उठाया है। मेरे ऊपरसे तो बोझा उतर गया है। यहाँकी आबोहवामें वर्षके आठ महीने कुरता वगैरह पहननेकी तो जरूरत ही नहीं लगती। उसमें भी मद्रासके बारेमें तो हम कह सकते हैं कि यहाँ बारहों महीनोंमें कभी सर्दीका मौसम आता ही नहीं। और मद्रासमें प्रतिष्ठित लोग भी धोतीके अलावा और कपड़ा बहुत कम पहनते हैं।

भारतके करोड़ों किसानोंकी पोशाक तो लँगोटी ही है। वे इससे कुछ अधिक नहीं पहनते, ऐसा मैंने सब जगह देखा है।

यह सब मैं सिर्फ इसी इच्छासे लिख रहा हूँ कि पाठक मेरे मनका ताप समझें। मैं ऐसा नहीं चाहता कि मेरे साथी अथवा पाठकगण सिर्फ लँगोटी ही पहन कर रहें। लेकिन यह अवश्य चाहता हूँ कि वे सब विदेशी कपड़ेके बहिष्कारका पूरा अर्थ