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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समझें और बहिष्कार तथा खादीके उत्पादनके लिए उनसे जितना बन पड़े करें। वे समझें कि स्वदेशी ही सर्वस्व है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २-१०-१९२१

१०२. बहनोंसे

[ २ अक्तूबर, १९२१]

प्यारी बहनो,

मैं यह विचार कर रहा हूँ कि आज अपने जन्म-दिवसपर मैं आपको क्या सन्देश भेजूं। मेरे जन्मदिवससे आप बहनोंका क्या सम्बन्ध हो सकता है? मुझे भारतकी स्त्रियाँ क्यों जानती हैं ? इस प्रश्नपर विचार करता हूँ तब मुझे लगता है कि वे मुझे, उनके प्रति मेरे प्रेमके कारण जानती हैं। वे यह बात जानती हैं कि मुझे स्त्रियोंकी शील-रक्षा प्यारी लगती है और मैंने उन्हें उसका सबसे आसान और अच्छा उपाय बताया है। यह उपाय स्वदेशी है। स्वदेशी धर्मका पालन करनेमें जितनी सहायता स्त्रियाँ कर सकती हैं उतनी पुरुष नहीं कर सकते। जिस समय भारतकी पुत्रियाँ सूत कातकर अपना और दूसरोंका शरीर ढका करती थीं उस समय भारत चाहे निर्धन रहा हो, किन्तु वह आजकी तरह बिलकुल कंगाल न था। उस समय भारतीय स्त्रियाँ अपने सतीत्वकी रक्षा जैसे कर सकती थीं वैसे आज नहीं कर सकतीं, यह मैं देख सकता हूँ। इसलिए इसी बातको मैं बहनोंके सामने आज फिर रखता हूँ।

आप सब बहनें नित्य कमसे-कम एक घंटा सूत अवश्य कातें। सब बहनें सादगीसे रहना अपना धर्म समझें और उसीको अपना शृंगार मानें एवं कन्याएँ जो सूत कातें उसीसे बनाये गये कपड़ोंको पवित्र मानें और उसीसे अपने अंग ढकें।

मैं इसीमें भारतके लिए स्वराज्य देखता हूँ और चाहता हूँ कि इसी तरह बहनें भी देखें।

यदि हम किसी मनुष्यके प्रति अपना सम्मान और प्रेम प्रकट करना चाहते हैं तो उसका सर्वोत्तम उपाय यह है कि हम नित्य उसका अनुकरण करें।

मैं भारतसे जो कुछ माँग रहा हूँ उसका उद्देश्य केवल एक ही है, और वह यह है कि भारत में सत्ययुग आ जाये।

हमें भारतमें जो काम करते हैं उनमें स्त्रियोंकी शिक्षाका काम पहला है। यदि हम स्त्रियोंको शिक्षा दें तो वे अपने शील-सम्मानकी रक्षा कर सकती हैं। इस तरहकी शिक्षा देनेके लिए बड़ी विद्वत्ता की नहीं, केवल चरित्रकी जरूरत है।

आज आपने मेरे प्रति जो प्रेम प्रकट किया है उसके आधारपर मैं अब आपसे यह प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे ऊपर ऐसा प्रेम भी प्रकट करें जिससे यहाँ आप फिर सत्ययुग ला सकें। भारत अवश्य ही अपनी रक्षा स्वयं कर सकता है। यदि हम