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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तरह आज भी अपने कार्यके द्वारा लोगोंपर हम जितना प्रभाव डाल सकते हैं उतना भाषणों और लेखोंसे नहीं डाल सकते। यह समाज मुख्यतः मौन रहकर कार्य करे ऐसी आपसे मेरी नम्र प्रार्थना है।

हम इतनी सारी पुस्तकें पढ़ते हैं किन्तु जो कुछ पढ़ते हैं उसमें से कोई बात आचरणमें नहीं लाते तो सारा पढ़ना व्यर्थ है। इसलिए ढेरकी-ढेर पुस्तकें पढ़नेकी बजाय आप थोड़ा पढ़ें और उसको अपने आचरणमें लानेका प्रयत्न करें।

संसारमें शास्त्र अनेक हैं। मैं उन सबके नाम गिनाना नहीं चाहता किन्तु यह माननेमें कोई हानि नहीं है कि आप किसी शास्त्र के जितने अंशको अपने आचरण में उतारती हैं, आपने उस शास्त्रका उतना ही रहस्य प्राप्त किया है।

हम बहुत-सी प्रतिज्ञाएँ करते हैं, किन्तु उनका पालन करनेका ध्यान नहीं रखते, यह उचित नहीं है। हम जो भी प्रतिज्ञा करें हमें उसका पालन सचाईसे करना चाहिए। चाहे हमें अपने प्राणोंका त्याग करना पड़े किन्तु हमें अपनी प्रतिज्ञाका भंग नहीं करना चाहिए।

आप अपने जीवनको आदर्शमय बनायें। रोममें तो आदर्श बदल गये हैं। परन्तु अभी भारतने अपने आदर्श नहीं भुलाये हैं। हम हिन्दू हों चाहे मुसलमान, सभी अपने पूर्वजोंके उत्तराधिकारी हैं। और हम अपने इस उत्तराधिकारकी रक्षा तभी कर सकेंगे जब हम जीवन के आदर्शोंको सतत अपने लक्ष्यमें रखें। हमारे पूर्वजों में सात्विक प्रवृत्ति प्रधान होती थी, किन्तु आज तो वह नष्ट हो गई जान पड़ती है। जिधर देखते हैं उधर ही लोगोंके जीवनमें दम्भ दिखाई देता है। सभी लोग व्यवहारमें पग-पगपर असत्य बोलने लगे हैं। हमें अपना यह दोष दूर करना चाहिए और अपना जीवन सत्यमय बनाना चाहिए।

आपका विनीत भाई,
मोहनदास करमचन्द गांधी

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ६-१०-१९२१