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१०३. धर्म या अधर्म ?

कभी-कभी तो ऐसे लोग भी टेढ़-मेढ़े सवाल पूछ बैठते हैं और अपने कडुवे अनुभव पेश करते हैं जो इस युद्धमें हमारी सफलता चाहते हैं और जो असहयोगके भी कायल हैं। ऐसे सवाल मुझे चौंका देते हैं; पर साथ ही सावधान भी कर देते हैं। अपने एक मित्रके ऐसे एक पत्रका सार नीचे देता हूँ। उन्होंने यह पत्र बड़े प्रेमके साथ लिखा है। ये देशके हितचिन्तक हैं और वीर हैं। धर्म उन्हें प्रिय है। साथ ही, उन्हें मनुष्य के स्वभावका विस्तृत अनुभव है। उनके पत्रका आशय जितना मुझे याद रह गया है, अपनी भाषा में देता हूँ--

"आपकी नीयत के विषयमें तो किसीको जरा भी शक नहीं। आपके साधन भी निर्दोष हैं। परन्तु विद्यार्थियोंसे जो आपने स्कूल-कालेज छुड़वाये हैं, यह काम क्या आपको ठीक एवं सराहनीय मालूम होता है ? क्या इसका नतीजा बुरा नहीं होगा? मैं तो आज ही देख रहा हूँ कि इसका बुरा असर हुआ है। आजादीका सबक सिखानेसे उनका जी घर-बारकी तरफसे उचट गया है और माँ-बापके प्रति लड़कोंका आदरभाव कम हो गया दिखाई देता है। स्वराज्य तो मिले लेकिन मर्यादा-धर्मका लोप हो जाये तो ऐसा स्वराज्य किस कामका? भला बच्चोंको चरखा कातना कहीं शोभा देता है? हाँ, बड़े हो जानेपर वे जो जी चाहें सो करते रहें। यदि लड़के माँ-बापके साथ गुस्ताखीसे पेश आते हैं तो वे धर्म-भ्रष्ट हुए बिना तो रह ही नहीं सकते।

“असहयोगियोंके प्रति आपका अच्छा खयाल होना तो स्वाभाविक ही है। पर कहीं इसमें आपको भ्रम तो नहीं हो रहा है? क्या आपको यह विश्वास है कि सब लोग आपके ही जैसे हैं? मुझे तो यह दिखाई देता है कि इनमें बहुतेरे लोग ढोंगी हैं, मतलबी और घमण्डी हैं। अगर भले-भले आदमियोंको खोकर आप उच्छृंखल लोगोंको अपने साथ लिये हुए हों तो क्या आप यह पसन्द करेंगे? काश, मैं आपको अपनी आँखें दे सकता और यह दिखा सकता कि दुनियाकी तमाम सफेद चीजें दूध नहीं होतीं।

"आपकी विजय कामनासे प्रेरित होकर ही मैंने यह शंका की है और आपका समय लिया है।"

लेखकने अपने पत्रमें जितनी सरलता और सभ्यतासे काम लिया है उसे मैं यहाँ पूरी तरह प्रकट नहीं कर सका हूँ। उन्होंने महज प्रेमवश होकर ही यह पत्र लिखा है। और ऐसे पत्र मुझे हमेशा इस पसोपेशमें डाल देते हैं कि कहीं सचमुच मर्यादाका लोप तो नहीं हो रहा है?

मुमकिन है, कुछ लड़के गुस्ताख हो गये हों। जब 'गीता'के नामपर बम फेंके गये हैं तब मेरे वचनोंका अनर्थ हो, तो इसमें अचम्भेकी क्या बात है? पर मुझे तो यकीन है कि स्कूल-कालेजोंके बहिष्कारके इस आन्दोलनका फल, समष्टि रूपसे अच्छा ही हुआ है। विचार तो अच्छा ही था। मुझे इस बातका पूरा निश्चय है कि इस