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मैं जानता हूँ कि अभी तो इस परिवर्तनका श्री गणेश ही हुआ है। पर जब यह सम्पूर्ण हो जायेगा तब किसी भी मर्द या औरतको, जिसके हाथ काम करने लायक हैं, न तो किसीके दरवाजेपर भीख माँगनेकी और न भूखों मरनेकी जरूरत होगी। आज तो हम देखते हैं कि अकालके दिनोंमें हजारों लोग, जो काम करनेके लायक हैं, काम न मिलनेके कारण दानकी रोटीपर जीते हैं या आधा पेट खाकर ही रह जाते हैं। यह दृश्य कितना नीचा गिरानेवाला है।

बस, एक ही काम

इसलिए मैं कांग्रेसके और खिलाफतके हरएक कार्यकर्त्तासे कहता हूँ कि आप अपने-अपने जिलोंमें बस, चरखा चलाने और करघोंपर कपड़ा बुनवानेका ही प्रबन्ध कीजिए; दूसरे तमाम कामोंको छोड़ दीजिए। जबतक हमारे यहाँ एक भी काम करने लायक मर्द या औरत बिना कामके और बिना खाने-दानेके है तबतक अगर हम पेट-भर खाते रहें और आरामसे बैठे रहें तो हमारे लिए यह बड़े शर्मकी बात होगी। मैं धनवान लोगोंसे अनुरोध करूँगा कि वे बिना सोचे-विचारे कभी दान न दें और मुफ्त में खाना न खिलायें। अगर हम भारतवर्षको भिक्षा देनेवाला और भिक्षा पानेवाला, इन दो भागों में बाँट देंगे तो अगली पीढ़ी हमें कोसेगी। अगर हम चाहते हों कि हमारे राष्ट्रमें जरा भी आत्मसम्मान रहे तो हमें अवश्य ही इस बार-बारकी तंगीके लिए कुछ-न-कुछ व्यवस्था करनी ही होगी। अतएव जो लोग दीन-दुखियोंकी सहायता करना चाहते हैं, वे उनके हाथोंमें चरखा दें और उससे सम्बन्ध रखनेवाली विविध क्रियाएँ सीखने की सुविधाएँ जुटाएँ।

मत-प्रकाशन

जब किसी भी आन्दोलनमें पूरे आग्रहके साथ हिंसाका त्याग किया जाता है तब वह एक अत्यन्त शुद्ध प्रचार-आन्दोलन हो जाता है। ऐसे आन्दोलनको कुचलनेका कुछ भी प्रयत्न करना लोकमतको कुचलनेका प्रयत्न करना है। और वर्तमान दमनने ऐसा ही रूप धारण कर लिया है। जो बातें मैं अपने अन्तरतमसे स्वीकार करता हूँ, उन्हें प्रकट क्यों न करूँ? मैं यह साफ-साफ कहता हूँ कि --

(१) किसी भी हैसियतसे, खास करके सिपाहीकी हैसियतसे, इस सरकारकी नौकरी करना पाप है।

(२) शराब और दूसरी नशीली चीजोंका पीना पाप है।

(३) विदेशी कपड़ा पहनना पाप है।

(४) अनाज और रुईका सट्टा करना और जुआ खेलना पाप है।

सरकार भी असहयोग आन्दोलन के खिलाफ प्रचार कर रही है, इसलिए हो सकता है कि उसे अपनी मुलकी और फौजी नौकरियोंके लिए रंगरूट प्राप्त होते रहें, तरह-तरह की तरकीबें लड़ाकर वह लोगोंको शराब पीने और विदेशी कपड़ा पहनने के लिए तथा अनाज और रुईका सट्टा करनेके लिए फुसला ले, और इस तरह तबतक अपनी हुकूमत कायम रहे जबतक कि लोग जान-बूझकर या अज्ञान-वश उसके साथ सहयोग कर रहे हैं। लेकिन जिस दिन लोगोंके दिलमें इसके विपरीत विश्वास हो