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गया है, वह है इनाम और सजाका तरीका -- खिताबों और मोटी-मोटी तनख्वाहोंके रूपमें इनाम उन लोगोंके लिए जो इस प्रणालीको सहायता देते हैं, और सजा, बल्कि अत्याचारतक उन लोगोंके लिए जो इसे सुधारना या मिटाना चाहते हैं। ऐसी अवस्था में सरकार उन तमाम विचारोंकी अभिव्यक्तिको और उन तमाम आन्दोलनोंको बन्द करनेका प्रयत्न प्राण-पणसे किये बिना नहीं रहेगी जो उसके विशेष हितोंको आघात पहुँचा सकते हैं। हम इस भ्रममें न रहें कि सरकार उदारता धारण करके आखिरी दमतक चुप रही और जब हद हो गई तभी उसने अपना हाथ उठाया। हमको मानना होगा कि यह सरकार एक इतनी ताकतवर और साधन-सम्पन्न संस्था है, जितनी ताकतवर और साधन-सम्पन्न संस्था दुनियाने आजतक कभी न देखी होगी। यह मौका ताकती रहती है; यह अपने विपक्षियोंको खेल खेलनेका मौका देती है, परन्तु ज्यों ही उनमें संजीदगीका भाव पाया कि यह तुरन्त ही वार करती है। जो डाकू अपनी लूटकी चीजोंके मालिकको अपनी चीजें वापस लेनेकी बचकाना कोशिशें करनेका मौका तो देता है, परन्तु ज्यों ही मालिक संजीदगीसे पेश आता है और सफल होता दिखता है त्यों ही उसका सिर धड़से अलग कर देनेके लिए तैयार हो जाता है, उसे उदार कौन कहेगा? जो डाकू इस प्रकार युक्तिपूर्ण ढंगसे बरतता है उसे हम चालाक समझते हैं और जब वह अपने बिलकुल निरपराध और अत्याचारका शिकार होनेका ढोंग करता है, तब हम उसे पाखण्डी कहते हैं। अब हमारी दक्षता इसी बातमें है कि हम इस सरकारके हाथकी कठपुतली न बन जायें। वह चाहे हमें सख्त या सादी सजाएँ कितनी ही दे, हमें न तो अपने होश-हवास खो बैठना चाहिए और न मारकाट या खून-खराबीपर ही तुल जाना चाहिए। हमें फाँसीपर लटका दिया जाये तो भी न डगमगाना चाहिए। मैं अली-भाइयोंको अपने सगे भाइयोंकी तरह चाहता हूँ। पर अगर सरकारी न्यायाधीश उन्हें फाँसीकी सजा दे दे तो भी मैं सरकारके पास उनके लिए वकालत करने हरगिज न जाऊँगा। उनकी इस तरहकी मृत्युको मैं बड़ी शान-बानकी मृत्यु कहूँगा और इस बातका रश्क करूँगा कि उन्हें ऐसी खुशकिस्मती नसीब हुई। अगर उन्हें आजीवन कालेपानीकी सजा मिली तो मैं यह सोचूंगा कि मैं जितनी जल्दी हो सके, स्वराज्य स्थापित करके ही उन्हें वहाँसे छुड़वाकर घर लाऊँ।

हमारे पास इसकी बस एक ही दवा है (और वह बहुत ही कारगर दवा है) कि हम सरकारको वह जितना अत्याचार करना चाहे कर लेने दें, और यह विश्वास रखकर कि उसकी बुरीसे-बुरी करतूतोंका फल देशके लिए अच्छेसे अच्छा ही होगा, उसके दमनसे चित्तको जरा भी डाँवाडोल न होने दें तथा अपने निश्चित कार्यक्रमको पूरा करनेमें जी-जानसे लग जायें -- इस अटल विश्वाससे कि इससे निश्चय ही हमारा अभीष्ट सिद्ध होगा। यह कार्यक्रम क्या है? यही कि घर-घरमें और गाँव-गाँवमें चरखों और करघोंका प्रचार कर दिया जाये।

एक उपयुक्त कहानी

मौलाना आजाद सोबानी स्वदेशीके लिए अद्भुत कार्य करते रहे हैं। उन्होंने मुझे मिस्त्रियोंकी धीरता और बहादुरीकी एक रोमांचकारी कहानी सुनाई। उन्होंने बताया