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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि एक बार कुछ सिपाहियोंने मिस्त्रियोंकी एक मसजिदको घेरकर उसके भीतर चल रहे राष्ट्रीय प्रचारको रोकना चाहा। मसजिदमें उपस्थित नमाजी लोगोंके सामने एक नौजवान भाषण दे रहा था। भाषण देनेसे वह बाज नहीं आया और सिपाहियोंने उसे गोली मार दी। लोग बिलकुल अविचलित रहे। दूसरे नौजवानने बोलना शुरू किया, और जब वह बोल रहा था तभी उसे भी गोली मार दी गई। इसी तरह सात नौजवान गोलियोंके शिकार हुए, किन्तु उन्होंने प्रस्तुत विषयपर वार्ता समाप्त करके ही छोड़ी। और इस अवधि में जब बलिदानोंकी यह गौरवमयी घटना घटित हो रही थी, उपस्थित लोग बिलकुल अविचलित रहे। मिस्रवाले अहिंसामें विश्वास नहीं रखते। लेकिन वे बड़े अच्छे सिपाही हैं। वे नहीं चाहते थे कि वे बदलेकी कार्रवाई करें और उसके फलस्वरूप मसजिदकी ईंटसे-ईंट बजा दी जाये और उपस्थित सभी लोगोंको व्यर्थ में मौत के घाट उतार दिया जाये। वे यह दिखाना चाहते थे कि वे डरनेवाले नहीं हैं और कोई भी आदेश उनके साहसको नहीं तोड़ सकता। और इसलिए वार्ता इस तरह पूरी की गई, मानों कुछ हुआ ही न हो। उन नमाजियोंने मृत्यु और जीवनको एक ही माना। इस आख्यानसे क्या सबक मिलता है, वह स्पष्ट है। हम जिन्होंने कि अहिंसाकी शपथ ली है उन सात नौजवानों तथा वहाँ उपस्थित नमाजियोंकी बहादुरी और धीरता सीखनेकी कोशिश कर रहे हैं। हममें अपने उद्देश्यकी प्राप्तिके प्रयत्नमें किसीको मारनेका खयालतक मनमें लाये बिना स्वयं मौतको गले लगानेका साहस होना चाहिए। फिर तो यह निश्चित ही है कि हम तीन महीने के भीतर विजय प्राप्त करके ही रहेंगे।

साजिश संगीन होती जा रही है

साजिश संगीन होती जा रही है, क्योंकि सरकार हमारे खिलाफ अपनी सारी ताकतें सुसज्जित करती जा रही है। मुझे अभी-अभी बतलाया गया है कि असमके एक अभिजात कुलमें उत्पन्न बैरिस्टर श्री फूकनसे सरकारने शान्ति बनाये रखनेके लिए मुचलका देने को कहा है। अपनी यात्राके दौरान मुझे उनसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वे एक बहादुर सिपाही हैं और खिलाड़ी-वृत्तिके हैं। लेकिन वे पक्के अहिंसावादी हो गये हैं। उनका खयाल है कि भारतके हृदयमें अगर कोई चीज आशाका संचार कर सकती है तो वह अहिंसा ही है, और इसीके बलपर एक वर्षके अन्दर स्वराज्य हासिल किया जा सकता है। लेकिन श्री फूकन एक बहादुर कार्यकर्त्ता हैं। वे और उनके साथी कार्यकर्त्ता स्वदेशीको फिरसे पूरी तरह प्रतिष्ठित कर देना चाहते हैं, और असम सरकारको उनका यह खयाल पसन्द नहीं है। आन्ध्र देशके एक शक्तिशाली जमींदार, गम्पालागूडमके कुमारराजाके साथ भी सरकारने ऐसा ही व्यवहार किया है, क्योंकि उन्होंने मद्य-निषेधके लिए काम करनेका साहस दिखाया। अपनी यात्रा के दौरान मैं जो अखबार पढ़ पाया, उनमें मुझे केवल ये दो उदाहरण मिले हैं। लेकिन मुझे तनिक भी सन्देह नहीं कि ऐसे बहुतसे कार्यकर्त्ताओंके मुँह बन्द किये जा रहे हैं और बहुतसे अन्य कार्यकर्त्ताओंके मुँह बन्द किये जायेंगे। यह सब शुभ समाचार है, बशर्ते कि हम लोग जो अभी जेलके बाहर हैं, जेल भेज दिये गये अपने अपेक्षाकृत अधिक सौभाग्यशाली भाइयोंके कामको लगनसे करते रहें। मैं उन्हें सौभा-