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ग्यशाली इसलिए कहता हूँ कि मजलूम लोगोंके लिए जेलोंमें रहना सौभाग्यकी ही बात है। जहाँ आतंकका शासन हो, वहाँ सच्चे और ईमानदार लोगोंके लिए जेल एक सम्मानका स्थान है। जो लोग अत्याचारियोंके मार्ग में या उद्देश्यमें बाधा डालते हैं, उनसे अत्याचारी यही कीमत वसूल करते हैं। इन सजाओंसे हमें अपना प्रयत्न निरन्तर जारी रखनेकी प्रेरणा लेनी चाहिए। जब हमें साफ तौरपर रास्ता दिखा दिया गया हो तो नेताओंकी कोई जरूरत नहीं रह जाती। आज हम जानते हैं कि हमें क्या करना है, कैसे करना है; और यह हमारा सौभाग्य है तो हमें अपने नेताओंके जेल भेजे जानेपर हताश नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रसन्न होना चाहिए और मिस्रके जिन नमाजियोंकी कहानी मैंने सुनाई, उन्हींके समान साहसके साथ अपना काम जारी रखकर अपने-आपको स्वराज्यके योग्य सिद्ध करना चाहिए।

अब लाठियोंका उपयोग न करें

अपने मद्रास तथा रायलसीमाके दौरेके क्रममें और अन्यत्र भी हमने देखा कि अन्य स्थानोंकी तरह ही वहाँ भी शक्ति व्यर्थ नष्ट हो रही है। हर जगह बड़ी-बड़ी भीड़ें सिर्फ एक झलक पानेके लिए घंटों खड़ी रहती थीं। चीख-पुकार तो इतनी थी कि सहना मुश्किल था। मैंने यह भी देखा कि जहाँ-कहीं पहलेसे इन्तजाम कर लिया गया था, जैसे कि त्रिचनापल्ली, चेट्टिनाड, तिन्नेवेली, तथा अन्य स्थानोंमें वहाँ बहुत उपयुक्त और वांछनीय व्यवस्था थी, और हम लोग बिना किसी कठिनाईके बहुत सारा काम कर पाये। लेकिन रायलसीमामें हमने स्वयंसेवकोंको सात-सात फुट ऊँची बाँसकी लाठियाँ लिये देखा। उद्देश्य यह था कि मेहमानोंको भीड़से बचानेके लिए उनके सहारे घेरा बना लिया जाये। लेकिन मैंने देखा कि इन लाठियोंसे सुविधाके बदले बाधा ही पहुँचती थी, इनके कारण लोग आसानीसे आ-जा नहीं सकते थे और वैसी भीड़में उनसे चोट लगने का खतरा भी था। कई बार तो स्वयं मेरी ही आँखोंको चोट लगते-लगते बची। और स्वयंसेवकों द्वारा संरक्षण अनुभव करनेके बजाय मुझे तो यही डर लगा रहा कि इन लाठियोंसे किसी भी क्षण मुझे चोट पहुँच सकती है। मैंने स्वयंसेवकोंको बताया कि इस दृष्टिसे इन लाठियोंकी अपेक्षा मजबूत रस्सी कहीं अधिक उपयोगी होगी। मौलाना आजाद सोबानीको मेरी बात जँच गई, और चूँकि अहिंसाकी प्रतिज्ञा के अनुसार किसीको चोट पहुँचाने के लिए लाठियोंका उपयोग नहीं लिया जा सकता था, इसलिए मौलाना सोबानीने ताड़पत्रीमें स्वयंसेवकोंको लाठियाँ छोड़ देने को राजी कर लिया। मैं सभी स्वयंसेवक दलोंको ऐसे ही परिवर्तनकी सलाह दूंगा। चूँकि हमारा आन्दोलन जाने-माने तौरपर शान्तिपूर्ण है, इसलिए अगर हम लाठियाँ बिलकुल छोड़ दें तो यह और भी अच्छा रहेगा। चूँकि हम शान्ति सेनाके सिपाही हैं, इसलिए पोशाकमें तथा अन्य मामलोंमें भी हम जहाँतक हो सके, साधारण सिपाहियोंकी कमसे-कम नकल करें।

प्रशिक्षणको कमी

कई स्थानोंपर स्वयंसेवकोंमें प्रशिक्षणकी कमी देखकर बड़ा दुःख हुआ। उपर्युक्त कुछ स्थानोंको छोड़कर उन्होंने बराबर बाधा ही पहुँचाई हालाँकि उनका मंशा पूरी