पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/२९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६५
३० सितम्बर

हममें यह आत्मविश्वास भी आ जायेगा कि हममें अपना प्रबन्ध आप कर लेनेकी योग्यता है।

आज सर विलियम विन्सेंट[१] हमें इच्छानुसार नाच नचा सकते हैं। जो लोग अपने मनसे ही जनताके प्रतिनिधि बन बैठे हैं, उन लोगोंको वे यह समझाते हैं कि भारतके अल्पसंख्यक लोगों के हितोंकी रक्षा केवल ब्रिटिश सरकार ही कर सकती है। उन्होंने इन लोगोंको यह विश्वास भी करा दिया है कि आजतक भारतीयोंमें से इतने भी अफसर और सैनिक नहीं निकल सके हैं जो विदेशियोंके आक्रमणसे देशकी सीमाओंकी रक्षा कर पाते।

पर जिस दिन सर विलियम विन्सेंट यह देखेंगे कि हम लोग अपनी मुख्य आवश्यकताओंकी पूर्ति ब्रिटिश सत्ताकी सहायताके बिना और सच कहें तो उसके विरोध के बावजूद स्वयं करने लग गये हैं और उसके लिए हमें दूसरे देशोंकी सहायताकी आवश्यकता नहीं रह गई है, उसी दिनसे वे हमें नाच नचाना छोड़ देंगे और उनका रुख बदल जायेगा।

स्वदेशी हमारे लिए खिलाफत है, यही हमारी कामधेनु है। जिस समय हम स्वदेशीको सिद्ध कर लेंगे उस समय हममें इतनी शक्ति आ जायेगी कि हम खिलाफतकी रक्षा कर सकेंगे। उस समय हम अपने देशकी सीमाओंको बाहरी आक्रमणसे बचा सकेंगे और अपना प्रबन्ध भी आप कर सकेंगे।

मुझे विश्वास है कि यदि ३० करोड़ भारतवासी आज कृत-संकल्प हो जायें, यदि एक करोड़ कांग्रेस सदस्य ही आज जी-जानसे जुट जायें, तो हम इसी मासमें विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कर सकते हैं और अपनी आवश्यकताके लायक स्वदेशी कपड़ा तैयार कर सकते हैं। इसके लिए तीन शर्तें पूरी करनी पड़ेंगी। पहले हम हर तरहके विदेशी वस्त्रोंका परित्याग करें, दूसरे इस बीच के समयमें कमसेकम वस्त्रोंसे ही अपनी आवश्यकता पूरी करें; और तीसरे इस कमसे कम आवश्यकताकी पूर्ति के लिए हम जितनी खादी आवश्यक समझें उसके लिए अपने हाथसे सूत कातकर तैयार करें या अपने पड़ोसीसे सूत कतवाएँ और उसे गाँवके जुलाहेसे बनवा लें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ६-१०-१९२१
  1. गवर्नर-जनरलको कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य।