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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

में असुविधा प्रतीत होती है। जबतक पुरुष विदेशी कपड़ेका पूर्ण त्याग नहीं करते तबतक स्त्रियोंसे ऐसी आशा कैसे की जा सकती है ? इस तरह अनेक तरहकी बाधाएँ हमारे स्वदेशी प्रचारके मार्ग में खड़ी हैं। जब हम इनको दूर कर लेंगे तभी स्वराज्यका सूर्य क्षितिजपर चमकता दिखाई देगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ६-१०-१९२१

११४. टिप्पणियाँ

पूर्व आफ्रिका

पूर्व आफ्रिका भारतीयोंके कष्टोंकी[१] कथा यहाँके अखबारोंमें छपती है इतना ही नहीं बल्कि वहाँसे भी मित्र लोग मुझे समाचार देते रहते हैं। फिर भी मैं नवजीवन या 'यंग इंडिया" में इस सम्बन्धमें शायद ही कभी कुछ लिखता हूँ। पूर्वी आफ्रिकाके भारतीय इसका अर्थ यह न समझें कि मुझे उनके कष्टोंका ज्ञान नहीं है अथवा उनके प्रति मेरी सहानुभूति कम हो गई है। किन्तु जिसके ऊपर तलवारकी चोट पड़ रही हो वह सुईकी चुभनको कुछ नहीं मानता, मेरी स्थिति कुछ ऐसी ही है। मुझे भारतकी आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थिति इतनी बिगड़ी हुई दिखाई देती है और उससे मेरा मन इतना दुःखी होता है कि उसकी तुलनामें अन्य सब दुःख मुझे कुछ नहीं लगते। मैं यह भी जानता हूँ कि जबतक भारतके कष्टोंका अन्त नहीं होता तबतक पूर्वी आफ्रिकाके भारतीयोंके कष्ट दूर नहीं हो सकते। किन्तु जैसे कुए में पानी भरता है तो चरईमें अवश्य ही आता है वैसे ही भारतका रोग जब मिट जायेगा तब पूर्वी अफ्रिकाके भारतीयोंका रोग भी अवश्य मिट जायेगा। यदि हम भारतके रोगको दूर करनेका उचित उपाय न करते होते तो हम सभी पूर्वी आफ्रिकाके भारतीयोंके कष्ट दूर करनेमें लग पड़ते।

इसका अर्थ यह नहीं है कि पूर्वी आफ्रिका के भारतीय स्वयं कोई पुरुषार्थ न करें। उनको तो पुरुषार्थ करना ही चाहिए। किन्तु भारतकी ठोस सहायता आज उन्हें उनके नामपर नहीं, बल्कि भारतके रोगको मिटानेके नामपर मिलेगी और मिल रही है। वे समझ गये हैं कि भारतका तेज इतना बढ़ गया है कि इससे उनको सहायता मिलती रहेगी। स्वयं उनकी शक्ति भी बढ़ी है।

पूर्वी अफ्रिकाके गोरोंने मर्यादा तोड़ दी है। ऐसा जान पड़ता है उन्होंने ब्रिटिश विधानको न माननेका निश्चय कर लिया है। कानूनका ऐसा भंग कानूनकी अविनय अवज्ञा है। जब मनुष्य केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिए कानूनका भंग करता है तब वह सविनय भंग नहीं होता। अपने इस कार्यमें उन्होंने जनरल स्मट्ससे सहायता माँगी थी, किन्तु वहाँसे उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। मुझे विश्वास है कि यदि

  1. रिहायशी और व्यापारिक क्षेत्रोंमें जातीय पृथक्करणके प्रस्तावके फलस्वरूप।