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पूर्वी आफ्रिकाके भारतीय साहसी, विनयशील, मर्यादापालक और सत्यपर आरूढ़ रहेंगे तो उनको कोई आँच नहीं आयेगी। झूठा मनुष्य सदा कायर होता है। पूर्वी आफ्रिकाके अंग्रेज पाप करना चाहते हैं, इसलिए यदि भारतीय सत्यके ही मार्गपर स्थित रहेंगे तो अंग्रेजोंकी पापपूर्ण उद्धतता दबी रहेगी। भारतीय सत्यके मार्गपर स्थित रहें इसका अर्थ यह है कि वे अपना मामला मजबूत रखें, उसको बढ़ा-चढ़ाकर न बतायें और उनमें जो भी दोष हों, निकाल डालें। हमपर सदा एक आरोप लगाया जाता है और वह ठीक होता है। वह आरोप यह है कि हम गंदे रहते हैं, धन कमाते हैं फिर भी अपना घरबार मैला रखते हैं। हम बहुत गन्दगी फैलाते हैं और थोड़ी जगहमें बहुतसे लोग रहते हैं। इस आरोपमें जिस हदतक सत्य हो उस हदतक हमें अपने रहन-सहनमें सुधार कर लेना चाहिए।

हमारे ऊपर दूसरा आरोप यह लगाया जाता है कि हम हब्शियोंको ठगते हैं। इस आरोप में कोई सचाई नहीं है, क्योंकि आरोप लगानेवाले लोग स्वयं बहुत धोखेबाज हैं। फिर भी हमें तो यह दोष भी, जिस हद तक वह सही हो निकाल ही देना चाहिए।

हमारे ऊपर तीसरा आरोप वे तो नहीं लगाते, किन्तु हम स्वयं उसे अनुभव करते हैं और वह यह है कि हममें एकता नहीं है। हममें यद्यपि जातीय अभिमान नहीं है, फिर भी हम अपना स्वार्थ सिद्ध करनेमें अपने समाजके हितोंका ध्यान नहीं रखते। जब हम विदेश जाते हैं और वहाँ कम संख्यामें होनेपर भी हममें यह दोष रहता है तो वह वहाँ साफ दिखाई देने लगता है और हम वहाँ बहुत बुरे रूपमें दिखाई देते हैं।

यदि पूर्वी अफ्रिकाके भारतीय इन सब दोषोंसे मुक्त हो जायें अथवा मुक्त रहें और अपना साहस बनाये रखें तो उनको कोई भी हानि नहीं पहुँच सकती।

हृषीकेश

हृषीकेश हरद्वारसे गंगोतरीके मार्गपर एक बड़ा तीर्थ है। यहाँसे यात्री धीरे-धीरे पहाड़ोंमें प्रवेश करते हैं। इसे प्रकृतिने सुन्दर बनानेमें कोई कमी नहीं रखी है। पहाड़, उछलती-कूदती गंगा, निर्मल जल और ऐसी ही अन्य बातोंको देखकर हमें ऋषियोंकी दूर दृष्टि, कलाकी परख और सरलताका पूर्ण भान होता है। किन्तु उनके उत्तराधिकारियोंने उसकी कैसी दुर्दशा की है, इसका कुछ-कुछ दुःखद अनुभव मुझे कुम्भ मेलेके अवसरपर हुआ था। हृदयके मलिन और नामके साधु श्रद्धालु यात्रियोंको ठगते थे। मलिन शरीर और आलसी यात्री चाहे जहाँ शौचादि करके इस पवित्र स्थानको गन्दा करते थे। यह देखकर मेरा हृदय रोता था। पुराने ऋषि [ शौचादिके लिए] जंगल जाते थे तो मीलों दूर एकान्त में चले जाते थे। आज तो हृषीकेशमें बहुत बड़ी आबादी है। वहाँ लोग गंगाके किनारे बेशर्मी से शौचके लिए बैठ जाते हैं और 'जंगल गये' ऐसी कल्पना कर लेते हैं। यह तो आलस, अज्ञान और गन्देपनकी हद हो गई। ये सब बातें मैंने वहाँ पाँच वर्ष पहले अपनी आँखोंसे देखी थीं; किन्तु अब एक लेखकने तीन महीने वहाँ रहने के बाद अपने व्यक्तिगत अनुभवके आधारपर एक हृदयविदारक