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११६. “टू अवेकिंग इंडिया" की प्रस्तावना

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
८ अक्तूबर, १९२१

इस पुस्तिका में श्री स्टोक्सने विदेशी कपड़ेकी होली जलानेके समर्थनमें केवल अपना तर्क ही नहीं दिया है, बल्कि स्वदेशीका अर्थशास्त्र भी दिया है। यदि हम इतनी बात भी याद रखें कि किसी भी सुगठित विकास के लिए जितना उपयोगी और आवश्यक सर्जन है उतना ही विनाश भी, तो हमें यह समझने में कोई कठिनाई न होगी कि देशके सम्मुख जो फौरी कायक्रम रखा गया है उसकी पूर्ति के लिए विदेशी कपड़ेकी होली जलाना भी आवश्यक है। किन्तु ऐसे समयमें जब विदेशी कपड़ेकी होलीपर घोर आक्षेप किया जा रहा है, श्री स्टोक्सका प्रयत्न अवश्य ही सहायक सिद्ध होगा।

मेरी दृष्टिमें तो यह विरोध विदेशी महीन कपड़े के प्रति हमने जो मोह अपने अन्दर पैदा कर लिया है उसकी तीव्रताका और विदेशी कपड़ेके उपयोगके फलस्वरूप भारतके करोड़ों घरोंमें जो गरीबी पैदा हो गई है उसके अपर्याप्त ज्ञानका ही सूचक है। किन्तु मुझे बहसमें नहीं पड़ना चाहिए; मैं ये पंक्तियाँ केवल श्री स्टोक्सके योग्यतापूर्ण निबन्धोंकी ओर पाठकोंका ध्यान आकर्षित करनेके लिए ही लिख रहा हूँ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
टू अवेकिंग इंडिया

११७. भाषण : अहमदाबादके मजदूरोंकी पाठशालाओंके समारोहमें[१]

८ अक्तूबर, १९२१

मैं आपके पास बहुत दिनोंके बाद आया हूँ। मैं अबसे ढाई महीने पहले आपके पास आया था। इस बीचमें बहुत-सी घटनाएँ हो गई हैं और अभी क्या-क्या होनेवाला है इसका पता मुझे या आपको नहीं है। हमें ईश्वर जैसे रखेगा वैसा ही रहना है।

आज देशमें जो कुछ हो रहा है उसकी एक कल्पना देनेसे पहले मैं आपके ही प्रश्नपर विचार करना चाहता हूँ। मैंने सुना है कि मजदूर भाइयों और मिल-मालिकोंके बीच कुछ मतभेद हो गये हैं। इस सम्बन्धमें अभी पंचोंकी बैठक होगी। जबतक पंच

  1. यह समारोह अनसूयाबेनके सेवाश्रममें हुआ था और इसमें लाला लाजपतराय और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी उपस्थित थे।